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धार्मिक विचार |
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हुए प्राणी के मांस में भी उसो जाति के निगोदिया जीव होते हैं, अतः मांस भक्षो को उनकी हिंसा लगती है । कच्ची, पकी या पकतो हुई मांस पेशियों में उसी जाति कि सम्मूच्र्छन जीवों की निरंतर उत्पत्ति होती रहती है अतः सर्वप्रकार के मांस भक्षण में हिंसा अनिवार्य रूप से होती है । इसलिए मांस भक्षण का परित्याग करना चाहिए।
मधु का स्वरूप :-मधु की एक बूद भी मधुमक्खियों की हिंसा रूप होती है । स्वयं पतित मधु में उसो जाति के अनंतजीव उत्पन्न होते हैं अतः उसके खाने से महान हिंसा होती है । इसी प्रकार मक्खन को भी हिंसा का कारण जानकर त्याग करना चाहिए ।
पांच उदुम्बरों का स्वरूप :--पांच उदुम्बरों में अनेक बस जीवों की उत्पत्ति होती है, अत: उनके भक्षण से महान हिंसा होती है इसलिए उनका भी परित्याग करना चाहिए । उपरोक्त पाठ पदार्थों का त्यागी अथवा अष्टमूल गुणों का धारी ही जिन देशनः श्रवण करने के पात्र है । इस प्रकार अमृतदशा (मोक्ष की कारण रूप अहिंसारूपी रसायन पाकर के भी अज्ञानी जीवों का असंगत वर्तन देखकर व्याकुल नहीं होना चाहिए ।
। रात्रिभोजन त्याग का उपदेश :-- रात्रि भोजन में भाव हिमा तथा द्रव्य हिंसा दोनों होती है । रात दिन का भेद किये बिना पाहार ग्रहण करने में रागादि की तीव्रता पाई जाती है । जैसे अन्न के पास तथा मांस के ग्रास ग्रहण में मूी को न्यूनाधिकना होती है उसी प्रकार दिन के भोजन ग्रहण तथा रात्रि के भोजन ग्रहण में भी मूर्छा की न्यूनाधिकता पाई जाती है, अत: रात्रि में भोजन में भाव हिंसा अधिक होती है सूर्य के प्रकाश में सूक्ष्म जीवोत्पत्ति नहीं होती तथा सूक्ष्म जीवों को देखा भी जा सकता है, परंतु रात्रि में दीपक ग्रादि के प्रकाश में जीवों की उत्पत्ति भी विशेष होती है तथा उन्हें देखा भी नहीं जा सकता प्रतः रात्रि भोजन में द्रव्य हिंसा भी होती है, अतः अहिंसादि पांच नतो की सुरक्षा के लिए रात्रि भोजन त्याग अवश्य करना चाहिए ।
१. पृ. सि.. ६५-७१ २. वही, ७२-७५ तथा ७५ ३. वी, १२९, १२२. १३५