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________________ धार्मिक विचार ] [ ४६६ नहीं व.रना अष्टम अनिवाचार नामक अग है।' इस प्रकार अष्ट अगम हित सम्य ज्ञान की उपासना करनी चाहिए। सम्यक्चारित्र की ग्राराधना का उपदेश : ___ सम्यग्दर्शन द्वारा दर्शनमोह को नाशकर, तथा सम्बज्ञान द्वारा तत्वार्थ को जानकर सदाकाल अकम्प सम्यकचारित्र का अवलंबन करना चाहिए। प्रज्ञान सहित चारित्र का सेवन सम्याचारित्र नाम नहीं पाता अतः सम्यग्ज्ञान के बाद ही सभ्यश्चारित्र की आराधना कही गई है ।। सम्यक्चारित्र का स्वरूप : समस्त पापयुक्त मन-वचन-कायरूप योगों के त्याग से संपूर्ण कषाय रहित, निर्मल परपदार्थों से विरक्तिका सम्यक् चारित्र है। वह सम्यक्चारित्र भी यात्मस्वरूप है । वहां पांचों पापों के एक देदा त्यागरूप देशवत तथा सर्वदेश त्याग रूप महायत ये चारित्र के दो प्रकार है। वास्तव में गंचों T!प हिंगामा ही हैं : माजी सभी गभित हो जाते है तथापि शियों का समझाने के लिए ही उसके ५ भेद उदाहरण स्वरूप कहें हैं। हिसा हिसा का लक्षण :- कषाय के कारण परिणमित मन-वचनकाय के योग से जो द्रव्य तया भावरूप दोनों प्रकार के प्राणों का घात है वह निश्चय ने हिंसा है । अथवा रागादि भावों की उत्पत्ति ही हिंसा है तथा उनकी उत्पत्ति न होना ही अहिंमा है. यही हिंसा प्रहिंसा के संबंध में जिनागम का सार है । यद्यपि परबस्तु के कारण थोडी भी हिंसा नहीं होती तथापि परिणामों की निर्मलता के लिए हिंसा के स्थानों का परित्याग करना उचित है । द्रव्य तथा भाव हिंसा के विशेषों को समझार समस्त प्रकार के आभागों का त्याग करना उचित है । हिसा के अभिप्राय वाला जीव द्रव्याहिंसा न होने पर भी हिंसा के फल को भोगता है जबकि तदाशय रहित को द्रव्यहिंसा होने पर भी हिंसा का फल प्राप्त नहीं होता । तीव्र कषायी जीव को हिंसा कम होने पर भी हिंसा का फल बहुत होता है । जैसे १. २. ३. ४. . सि. ३: रट्टी ".. वही ६, ४०. ४ पु. मि. ४३. ४४
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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