SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ ] [ आचार्य अमृतचन्द्र व्यक्तित्व और कर्तृत्व कार थे । इस सम्बन्ध में उन्होंने ही अपनी एक रचना "एकीभावस्तोत्र" के अन्त में लिखा है कि समस्त वयाकरण बादिराज से पीछे हैं, समस्त तर्कवादी बादिराज के बाद ही आते हैं, समस्त काव्यकार वादिराज से पीछे परिगणित हैं, समस्त भव्यजनों के हितैषियों में वादिराज ही अग्नणी हैं तो सभी जनजान हैं। मकर : आचार्यों ने समंतभद्र द्वारा स्थापित तर्क व न्याय धारा को परिपुष्ट एवं सुविकसित किया । उसमें भी आचार्य अमृतचन्द्र का अमूल्य योगदान रहा। जैन गहस्थाचार परम्परा का विकासः- समन्तभद्र द्वारा प्रदर्शित जैन गृहस्थाचार परस्परा को विकसित करने वाले प्राचार्यों में आचार्य कार्तिकेय (ई० ग्यारहवीं सदी) कार्तिकेयानुप्रेक्षाग्रंथ रचने वाले, भाचार्य जिनसेन {ई० ८०० - ८४३) महापुराण की रचना करने वाले, आचार्य अमृतचन्द्र (६६२-१०१५ ई०) पुरुषार्थ सिद्ध्य नाय के प्रणेता, पं० आशाधरजी (ई० ११७३.१२४३ ) सागार धर्मामृत के कर्ता चरित्र सारग्रंथ कर्ता, चामुण्डराय (ई० १०-११वीं सदी), अमितगति श्रावका चार (२६३-१०२१) रचयिता अमितगति, बसुनन्दिश्रावकाचार के लेखक आचार्य वसुनंदि आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। उपर्युक्त लेखकों में सर्वाधिक प्रामाणिक, लोकप्रिय, अत्यन्त गंभीर ग्रन्थकार आचार्य अमृतचन्द्र ही हैं। उनका पुरुषार्थसिद्धिय उपाय इस विषय का अनुपम, श्रेष्ठ ग्रन्थ रत्न है, जिस पर आगे यथास्थल सविस्तार प्रकाश डाला गया है। जैन भक्ति-धारा का विकास- समन्तभद्र द्वारा प्रवाहित आध्यात्मिक रसपूर्ण भक्ति धारा को प्रवाहित एवं विकसित करते रहने वाले अनेक प्राचार्य हुए, जिनमें सिद्धभक्ति प्रादि (दशभक्त्यादि) स्तुतियों के रचयिता आचार्य पूज्यपाद (ई. ५-६वीं सदी), सहस्त्रनाम स्तोत्र रचयिता आचार्य जिनसेन (ई० ८८०-८४३), "लघुतत्त्वस्फोट" अपरनाम 'शक्तिगितकोश" नामक अत्यन्त गहन, आलंकारिक, अध्यात्म व दर्शन से अनुप्राणित रचना के रचयिता आचार्य अमृतचन्द्र (६६२-१०१५ वि०), सामायिक पाठ के कर्ता प्राचार्य अमितगति (ई० ६६३-१०२१), एकीभावस्तोत्र के लेखक वादिराज (ई० १०००-१०४०), भक्तामर, १. वादिराजमनुशाब्दिकलोको, वादिराजमनुताकिकसिंहः । वादिराजमनु काव्यकृनस्ते, वादिराजम्नु भव्यसहायः॥प्रलोक न॥२६।। एकीभाव स्तोत्र
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy