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________________ पूर्व साहित्यिक परिस्थितिया ] । २१ PARTI सत्यशासन परीक्षा, प्रमाणमीमांसा, प्रमाण निर्णय, जल्पनिर्णय, नय विवरण, युक्त्यनुशासन, तत्वार्थश्लोकवार्तिक, विद्यानन्दमहोदय तथा बुद्धेश भवन ध्यास्थान, इन १३ गंभीर ग्रन्थों की रचना कर जैन न्याय, लकं एवं दर्शन परक् वाइ मय को भलीभांति समृद्ध किया। इसी तरह आचार्यकुमारनन्दि चतुर्थ (ई. आठवीं सदी का उत्तरार्ध नवापी भदी का पवर्षि ने "बादन्याय" नामक ग्रन्थ की रचना की। तत्पश्चात प्राचार्य माणिक्यनन्दि द्वितीय (नवमी दसवीं सदी ई०) ने अकलंकदेव के वचनों का अवगाहन करके परीक्षामुख नामक सूत्रग्रन्थ की रचना की जिसमें प्रमाण, प्रमाणाभास मादि की सूक्ष्म, संक्षिप्त परन्तु स्पष्ट नर्चा है। उनके बाद प्राचार्य अनन्तवीर्य (ई० दसवीं सदी के उत्तरार्ध में) अकलंकन्याय के प्रकांड पंडित हुए, जिन्होंने अकलक के सिद्धिविनिश्चय ग्रन्थ पर बहुत ही विद्वत्तापूर्ण टीका लिखी है । बहुश्रुत, दार्शनिक विद्वान् प्रभाचंद्र (ई० ६२५-१०२३) ने अकलंक के लघीयस्त्रय पर न्यायकुमुदचन्द्र नामक भाष्य तथा माणिक्यनन्दि के परीक्षामुख सूत्र पर 'प्रमेयकमलमार्तण्ड" नामक अत्यन्त गंभीर एवं विषद् टीका बनाई। श्रवणवेल्गोल ( मैसूर ) के ४० नं के शिलालेख में इन्हें शब्दाम्भोरुहभास्कर और प्रथिततकनन्थकार बताया गया है।' इनके ही समकालीन आचार्य अमृतचंद्र (वि.६६३ से १०१५) में हुए जो अत्यन्त प्रौढ़ गभीर, दार्शनिक एवं प्राध्यात्मिक टीकानों एवं मौलिक ग्रन्थों के रचयिता थे। उन्होंने कुन्दकुन्द के समयसार पर संस्कृत में "आत्मख्याति कलशटीका". प्रवचनसार पर तत्त्वप्रदीपिका टीका, पंचास्तिकाय पर समयव्याख्या टीका लिखकर इन्हें अत्यन्त तर्क प्रचुर, न्यायपूर्ण, मर्मस्पर्शी तथा अध्यात्मरस से सराबोर निर्मित कर न्याय, सिद्धांत तथा अध्यात्म की त्रिवेणी प्रवाहित की। उनके बाद मुनिराज वादिराज (ई. १०००-१०४० में) हए जो म्याद्वादविद्यापति, पदतर्कषणमुख जगदेकमल्लवादी आदि विशिष्ट उपाधियों से विभूषित थे। सालका नगर के ३६ नं. के शिलालेख में आपको प्रतिपादन करने में धर्मकीर्ति, बोलने में बृहस्पति और न्यायशास्त्र में प्रक्षपाद निरूपित किया गया है। इन्होंने अकलंनदेव के न्यायविनिश्चय पर २० हजार श्लोक प्रमाणटीका रची। इसके अतिरिक्त एकीभाव स्तोत्र, पार्श्वनाथ स्तोत्र, यशोधरचरित्र, काकुस्थचरित्र आदि रचनाएं की । आप साहित्यिक युग के असाधारण विद्वान्, वैयाकरण, महानतार्किक, और गंभीर काव्य १. जैनधर्म पृष्ठ २७१
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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