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________________ ४७४ ] [ प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व लिखा, साथ ही निमित्त कार्य का कराने वाला - परिणमाने बाला नहीं है इस बात का भी उख किया है। यहाँ यह बात स्पष्ट होती है कि पुद्गल स्कंधों में कर्म रूप से परिणमन की शक्ति स्वयं की है अतः पुदगल स्कंधों में जो कमैदशा रूप कार्य उत्पन्न हझा, उसका उपादान कारण तो तदप परिणमन शक्ति सम्पन्न पुद्गल स्कंध ही है। उस शक्ति से ही, पुद्गल व आर्मरूप परिणभा हैं - यह बतान के लिये अमृतचन्द्र ने "स्वयमेव" पद का प्रयोग किया है तथा तद्रप (कर्म भाव रूप) परिणमन शक्ति से रहित अथवा गुदगलर कंधों को कर्मरूप परिणमाने की शक्ति से रहित जीव को परिणाम उम परिणाम के निमित्तमात्र है। इसी प्रकार जीव भी निश्चय से अपने चैतन्यस्वरूप रागादि भावों से स्वयं परिणमन करते हैं क्योंकि उनमें भी वैसे परिणमन की स्वयं की कि उनके परिणमन में प्राकमाँ का उदय निमित्त मात्र होता है, वह रागादि भाव कराता नहीं है।' परिणमन में विशेषता - विचित्रता भी निमित्तों के कारण नहीं होती : जो पुद्गलस्कंध कर्म रूप परिणमन करते हैं, वे पाठ प्रकार के विचित्र परिमणन करते हैं। इन आठ प्रकारों को ही ज्ञानवरणी, दर्शनावरणी, वेदनीय, मोहनीय, प्रायु, नाम, गोत्र तथा अंतराय ये माम व्यबहुत हैं। इन आठों प्रकारों के १४८ उत्तरोतर प्रकार होते है अत: पुद्गल रकंध १४८ प्रकार से विशेषता - विचित्रता को प्राप्त करते हैं, इस विचित्रपरिणमन का भी कारण पुद्गलरकंधों की स्वयं की परिणाम शक्ति है । आत्मा उनका कर्ता नहीं है, निमित्तमात्र है । इससे स्पष्ट है कि समस्त कार्यों की नियामक शक्ति समस्त द्रव्यों में निहित अपनी अपनी तत्तत्कालीन योग्यता ही है । किसी प्रकार का निमित्त परसंयोग मात्र है । १. "परिमपमान वितश्विनामः स्वयमपि स्वर्भावः । भवति हिनिमित्तमात्रं पोद्गलिक कर्म तस्यापि ।। १३ ॥ पु. मि. 1॥ 'अदायमात्मा रागढ़े पयशीकृता शुभाशु भावेन परिणति तदा अन्य योग द्वारेण प्रविन्तः कर्मपुद्गलाः स्वयमेत्रसमुपात वैचित्र्यानाधरणादि भावः परिणमन्ने । अस्वभाव कृतं कर्मणा वंचिश्यं न पुनरात्माम् । -प्रवचनसार गा. १८७ टीका ।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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