________________
४.७२ :
! प्राचार्य अमृतचन्द्र व्यक्तित्य : एव वार्तृत्व
अनुग्राहक, उत्पादक, प्रेरक, अभिव्यंजक आदि शब्दों का निमित्तकारण के लिए प्रयोग भी होता है ।' अन्यत्र बन्धक, परिणाम, उपकारक, सहायक,
आधार निमित्त प्राश्रय निमित्त, उदासीन निमित्त आदि पर्यायवाची नामों का भी उलेम्म है । स्वयं प्राचार्य अमृतचन्द्र ने निमित्त के लिए कारण, हनु, निमितकर्ता,५, हेतूक , वहिरंग साधन" उदासीनकारण, आश्रयकारण उदासीन हेतु निमित्त मात्र प्रादि शब्दों का प्रयोग किया । निमित्त कारण के भेद :
उपरोक्त अनेक प्रकार के निमित्तों को मुख्यतः दो भेदों में समाहित किया जा सकता है । वे दो भेद हैं प्रयोग गौर विनसा । इन्हीं को प्रेरक निमित्त तथा उदासीन निमिन भी कहा जाता है। प्ररवः निमित्त के लिए शर्मा निभिस, उत्पादक निमित्त, परिणामक निमित्त इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है। जहां प्रज्ञानी जीव की योगरूप प्रवृत्ति और विज्ञाप निमित्त होता है वहां उसे प्रेरक या प्रयोग निमित्त कहते हैं, तथा जहां विभाबपरिणत जीव और पद्गलादि तय निमित्त होते हैं वहां उसे विस्त्रसा या उदासीन निमित्त कहा जाता है। उ बाल का संकेत पाचायं अमृतचंद्र ने भी किया है एक म्थल पर में लिखते हैं कि जिस प्रकार गतिपरिणत बायु, पताकाओं के मतिपरिणान का हेतु गर्ता देखा जाता है, वैस ही धर्मद्रा हेतकर्ता नहीं देखा जाता, क्योंकि वह परमार्थ से परिस्पंद लक्षण क्रिया से रहित होने के कारण भी गति क्रिया को प्राप्त नहीं होता है,
१. जनेन्द्र निद्धांत कोश- भाग २ पृ. ६१० । ५. जनतत्वमीमांशा-द्वितीय संस्मरण पृ. ५६ ३. लातस्य स्फोट-प्र. १५ ४, शमलतार गाया ॥३२ से १३६ की प्रारमख्याति टोका । ५. वी. माथा ९०० को अात्मणति टीका। ६. पनारि काय गायः ८८, समयध्याख्या टीका । ५. प्रवत्तारलार, त्वदीपिका गाथा २५ ८. पंचालित काय गाथा ८८ टोका । ६. वही, गाथा .९३, १४ १०. अामख्यारि गाथा ६० की उत्थानिका ।