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________________ पूर्व साहित्यिक परिस्थितियां । गौतमगणधर का स्मरण किया जाता है, उसी प्रकार कुन्दकन्दा बाद अध्यात्म के अद्वितीय प्रवक्ता एवं भाष्यकार के रूप में आचार्य अमृतचन्द्र का नाम विश्रुत है । उनके बाद के टीकाकारों ने उन्हें कलिकाल-गणधर के गरिमापूर्ण पद से विभूषित किया है।' प्राचार्य कुन्दकुन्द के अनन्य शिष्य गृपिच्छाचार्य उमास्वामो (ई. दूसरी सदी) ने तत्त्वार्थसूत्र अपरनाम मोक्षशास्त्र नामक ग्रन्थ की संस्कृत सूत्रों में रचना कर जैन संस्कृत वाङमय में सर्वप्रथम सूत्रशैली का सत्रपात किया । दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों ही जनसम्प्रदायों में उक्त गन्ध समान रूप से मान्य प्रादरणीय है। इस ग्रन्थ में जैनसिद्धांतों का रहस्य "गागर में सागर" की तरह भरा गया है। इसे जैनों की बाईबिल कहकर इसकी महत्ता व्यक्त की जाती है। इसके मंगलाचरण रूप प्रथम लोक पर ही प्राचार्य समन्तभद्र ने आप्तमीमासा (अपरनाम देवागम स्तोत्र की रचना ईसा की द्वितीय सदी में की थी। पश्चात प्राचार्य अकलंकदेव ने ( ई० ६४०-६८०) ८०० श्लोक प्रमाण 'अष्टशती" नामक संस्कृत पाटोका रची। तत्पश्चात् प्राचार्य विद्यानन्दि प्रथम (ई०७७५५४०) ने अष्टशती पर से ८ हजार श्लोक प्रमाण "अष्टसहस्त्री" नामक अत्यन्त प्रीत, क्लिष्ट, विजन को आश्चर्यकारी संस्कृत गद्यटीका लिखी। इसके अतिरिक्त तत्वार्थसूत्र पर अनेकों भाष्य और टीकाएँ रची गई, जिनमें कुछ प्रमुख टीकाओं के नाम इस प्रकार हैं :-समन्तभद्राचार्य (ई. दूसरी सदी) द्वारा विरचित ८४ हजार श्लोक प्रमाण टीका “गन्धहस्तिमहाभाष्य', आचार्य पूज्यपाद (ई० पांचवीं सदी)कृत "सर्वार्थ सिद्धि", आचार्य योगीन्दुदेव (ई० छठवीं सदी) विरचित "तत्त्वप्रकाशिका", अकलकभट्ट (भट्टाकलंक-६४०-६८० ई.) द्वारा रचित 'तत्त्वार्थ राजवातिक", आचार्य विद्यानन्दि (७७५-८४० ई.) कृत "श्लोकवातिक", अभूतचन्द्राचार्य (दसवीं सदी ई०) द्वारा प्रणीत "तत्वार्थसार" पघटीका, आचार्य अभयनन्दि (ग्यारहवीं सदी ई.) द्वारा लिखित तत्त्वार्थवृत्ति", आचार्य शिवकोटि (बारहवीं सदी ई.) द्वारा "रत्नमाला". आचार्य भास्करन न्दि (तेरहवीं सदी ई.) कृत ''सुखबोध टीका", प्राचार्य बालचंद्र (ई० १३५०) कृत कन्नड़ टीका, विवघसेन आचार्य कृत "तत्त्वार्थ-टीका', योगदेव कृत "तत्त्वार्थवृत्ति टीका", लक्ष्मीदेव कृत 'तत्वार्थटीका", आचार्य श्रुतसागर ( ई. १४७३-१५३३) कृत "तत्त्वार्थवृत्ति टीका", १. पुरुषार्थ सिद्धयुपाय (अनुवादक-मज्ञात) प्रथमावृति १६२८ ई० का मुख्यपृष्ठ
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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