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________________ ४६८ ! | आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व प्रयुक्त होता है । यह मानना भी भ्रम ही है कि किसी कथन में "ही" एवकार का प्रयोग मिथ्या एकांतवाची है । एवं "ही" का प्रयोग मिथ्या एकांत का सूचक नहीं बल्कि सम्म एकांत का ग्राहक है । सम्यक् एकांत सम्यक् यांत साक्ष ही होता है । स्यात् पद सम्यक अनेकांत को तथा एव पद सम्यक् एकांत का बनाता है। मोक्षमार्गी के लिए सम्पर्क पद विभूषित एकांत तथा अनेकांत दोनों इष्ट एवं पुज्य हैं। सम्यक् अनकांत प्रमाण रूप है अर्थात् एक ही वस्तु में रहने वाले अनेक धर्मों के स्वरूप को विषय करने वाला, या प्रकाशन करने वाला सम्यक् अनेकांत है । जबकि सम्यक् एकांत नय रूप है यक्षत् तु के विविक्षत एक धर्म का ग्राहक-प्रकाशक नय धम्मक एकांत है । (2 ग्रतः स्पष्ट है कि नयात्मक निरूपण में "ही" पद का प्रयोग करने से अनर्थ न होकर, अनर्थ का निषेध होता है एवं निर्णय की दृढ़ता प्रकट होती है । इस सम्बन्ध में जयधवलाकार ने स्पष्ट किया है कि जितने भी शब्द हैं, उनमें स्वभाव से ही एत्रकार का अर्थ रहता है, इसलिए कार का प्रयोग इष्ट के अवधारण के लिए होता है । जिस प्रकार प्रभा अंधकार का नाश करती है उसी प्रकार शब्द दूसरे के अर्थ का निराकरण करता है । और अपने अर्थ को कहता है । " स्याद्वाद के सम्बन्ध में भ्रांतियां : १. वाक्पेऽवधारणं तावदनिष्टार्थं निवृत्तये । समत्वात्तस्य कुचित् ॥ कर्त्तव्यमन्यया --श्लोक कार्तिक २/१/६ फ्लोक ५२ (जैनेन्द्र सि. कोश, भाग ४ पृ ५०३ ) एकत्र प्रतिपक्षाने धर्मस्वरूपनिरूपण युक्त्यागमायामविरुद्धः सभ्ययनेकांतः । - राजनातिक १/६/७ (जे. सि. कोशमान | पृ. १२८ ) गिरः सर्वाः स्वभावतः | अभूते एवकार प्रयोगो यमिष्टतां नियमाय सः ।। ३. कुछ विचारकों ने स्याद्वाद में प्रयुक्त स्यात् पद का अर्थ शायद 1. तिरी रस्ता स्वार्थ कथयति श्रतिः । मोवी भास्यं वथा भासयति प्रभा । – कपाय पाहुड ११, १३-१४ जनेन्द्र सि. कोश- भाग ४ पृ. ५०३ डा. बलदेव उपाध्याय भारतीय दर्शन पृ. १५५ न स्यात् का अर्थ शायद तथा संभवतः किया है। (जेवदर्शन पू. ५२६) डा. देवराज जी ने "पूर पश्चिमी दर्शन" के पृ. ६५ परस्यान् श का कदाचित् अर्थ किंग है, जो कालवादी है तथा श्रमपूर्ण है। (जैन दर्शन पृ. ५३१)
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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