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________________ ४६६ ! | आचार्य श्रमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व. का त्यागी होने से कि" शब्द से निष्पन्न कथञ्चित् अर्थ का पर्यायवाची लिखा है | वह स्याद्वाद सप्तभंगों, नयों तथा हेय उपादेय की अपेक्षाओं को प्रकट करता है ।" उक्त सप्तभंगों का स्पष्टीकरण भी प्राचार्य अमृतचंद्र में अनेक प्रकार से किया है । सप्तभंग रूप न्याय : यद्यपि सप्तभंग रूप न्याय का संक्षिप्त उलेख प्राचार्य कुन्दकुन्द ने प्रसंगोपात्त किया है तथापि उसका विशेष स्पष्टोकरण एवं प्रयाग आचार्य मृतचन्द्र से अपनी टीकाओं तथा अन्य रचनाओं में किया है। वे एक स्थल पर द्रव्यादेश से प्रयुक्त सप्तभंगी का निर्देश करते हुए लिखते हैं :- द्रव्य " स्यात् ग्रस्ति" है (१) द्रव्य " स्यात् नास्ति " है (२) द्रव्य " स्यात् श्रस्ति और नास्ति" हूँ (३) द्रव्य " स्यात् अवक्तव्य" है (४), द्रव्यस्यात् अस्ति थोर अवक्तव्य" है ( ५ ) द्रव्य "स्यात् नास्ति और अवक्तव्य" है (६), और द्रव्य "स्यात् अस्ति और नास्ति और अवक्तव्य" है (७) इस प्रकार द्रव्य सात भंग वाला है | 3 उक्त सप्तभंगात्मक द्रव्य स्वरूप की तथा प्रत्येक भंग को सिद्धि इस स्वक्षेत्र, प्रकार होती है। प्रथम भंग द्रव्य " स्यात् मस्ति" जो स्वद्रव्य स्वकाल तथा स्वभाव इन द्रव्य के स्वचतुष्टय की अपेक्षा विचार करने पर सिद्ध होता है तथा द्वितीय भंग द्रव्य स्यात् नास्ति है अर्थात् परद्रव्य, परक्षेत्र' परकाल तथा परकाल तथा परभाव द्रव्य के परचतुष्टय की अपक्षा १. स्वाद्वादः सर्वकन्तु त्यागात् किं वृत्त-चिद्-विधि भंग नयोपेक्ष माऽऽश्य- विशेषकः ।। १०४ ॥ तिय अस्थिथ उहवं अन्धत्त पुणो य तलिक्ष्यं ॥ दबं सन्तमंग आसवसेण संभवदि ॥ १४ ॥ 5 - देवाग स्त्रीभ - पंच विकाय अत्र पस्यादेश वशेनोक्तः सप्तभंगी । स्यादस्ति द्रव्यं त्यान्नास्ति द्रव्यं, न्यादस्ति च नास्ति च द्रव्यं सादवक्त द्रव्यं, स्पादनक्तन्यं द्रव्यं स्वादस्ति चाक्तव्य च द्रव्यं, स्पामास्ति चावकम् च द्रव्यं स्यादस्ति च नास्ति चरवक्तव्यं द्रव्यमिति ॥ " 1 पंचास्तिकाय समय, व्याख्या टीका गाथा १४.
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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