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। प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
प्रत्यक्ष परोक्षरूप दृष्ट और अनुमान आगमरूप इष्ट प्रमाणों से अविरुद्ध है ।' इस प्रकार अमृतचन्द्र के स्यावाद विषयक दार्शनिक विचार पूर्वाचार्यों की विचार रारणि का ही अनुचरण करते हैं । स्यावाद का अर्थ :--
___ आचार्य अमृतचन्द्र ने, स्याद्वाद की आवश्यकता तया महत्ता को जिस अतिशयता से व्यक्त किया है, उसका स्वरूप स्पष्टीकरण भी उसी तरह जोर देकर किया है। उन्होंने म्यादाद का पर्थ दिखाकर उपके सम्बन्ध में कल्पित प्रमों का भी यथा संभव निराकरण किया है । ल्याबाद में मूलतः दो शब्द है स्यात् तथा बाद । स्यात् का अर्थ है किसी अपेक्षा से कथन करना । तार्किक प्राचार्य प्रभाचंद्र लिखते हैं कि जिसके द्वारा प्रतिपादन किया जाय, वह वाद कहलाता है तथा जिसका वाचक शब्द स्यात् हो वह स्याद्वाद है।' अथवा म्यात् अर्थात् कथंचित् या विवक्षित प्रकार से अनेकांत रूप से वदना, वाद करना, जम करना, कहना तथा प्रतिपादन करना म्याद्वाद है। स्यात् पद के प्रयोग का प्रयोजन :
स्याद्वाद में प्रयुक्त मनात पद का प्रयोजन प्राचार्य अमृतचन्द्र की दृष्टि में इस प्रकार है - वह स्यात् पद सर्वथापने का निषेधक है, अनेकांत का द्योतक है तथा कथंचित् या किसी अपेक्षा अर्थ बोधक अव्यय के रूप में प्रयुक्त है। यहां नह स्पष्ट है कि स्थाबाद में प्रयुक्त स्यात् पद अस् धातु
१. "अनवद्यः म्यादादम्तव दृष्टाविरोधतः स्यावादः । इनरो न स्याद्वांदो सद्वितन विरोधान्मुखनीरा स्वाद्वादः । ।
___ -स्वयंभूस्तोत्र-वीन जिनस्तुति, प४३ २. पाद्यते प्रतिगाम्लोने ग्रेनासौ बाटः -: स्यादिति वादो वाचकः शब्दो
यम्याने कान्यवादस्यो स्यातायः ।" -स्वयंभूतोत्र, टोका. : २६ "म्यान कथंचि चित्रक्षितप्रकारेणानेकांनरूपेण वदनं वादो जल्प: कथन प्रतिपादन मिनी म्यादादः ।"
. -समयसार (नात्पर्य बृत्ति स्वादाद अधिकार, आ. अगसेन ४. “अत्र मन्त्र यत्वनिषेध कोदोमान्नद्योगकः कथं चिदथें स्थाच्छदो मिपाल: ।"
-पंचास्तिकाय गा. १५ की गनय व्याख्या टीका ।