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________________ दार्शनिक विचार ] | ४६३ है । अमृतचन्द्र से दोनों अपने अर्थ को व्यक्त करते हैं। इस प्रकार स्यात्पद तथा स्याद्वाद की महिमा श्राचार्य अमृतचन्द्र ने पद पद पर व्यक्त की है। सर्वथा एकांतवादी वाणी भी जब स्यात् पद से युक्त होती है तब वह परिष्कृत हो जाती है. एक विष को वमन करती है तथा सत्यरूप अमृत की वर्षा करती तत्त्वस्फोट नामक स्तोत्रकाव्य में तो आचार्य न समन कृति में प्रान्त अनेकांत तथा स्याद्वाद की महिमा गाई है । उनकी महिमा का नगाड़ा बजाया है तथा अन्य आत्म हितैषीजनों को भी अनकांत स्वरूप का स्याद्वाद के माध्यम से नगाड़ा बजाने की प्रेरणा की है । वे लिखते हैं कि स्वद्रव्य को अपेक्षा विधि तथा परद्रव्य की अपेक्षा निषेध तथा इसी प्रकार स्वक्षेत्र स्वकाल तथा स्वभाव की अपेक्षा विधि और परक्षेत्र परकाल परभाव की अपेक्षा निषेध प्रकट किया जाता है। इस प्रकार से प्रथम ही इस जगत् में, शब्द जोरों से मेरा बजाकर, निर्वाध रूप से निजात्म स्वरूप में आचरण करें। तार्किक शिरोमणि आचार्य समंतभद्र ने भी स्याद्वाद को निर्दोष कहा, क्योंकि वह कथंचित् अर्थ के वाचक स्यात्पद सहित है तथा ३. · शब्दानां स्वयमुनामिकारिक शक्ति शक्तानां स्वयमसनो परो न तुम् न व्यक्तिर्भवति कदाचनारि किन्तु स्याद्वाद चरमन्तरेण तस्य ॥ १८ ॥ एकस्मादपि वज्रसो द्वयस्यसिद्धी किन्नस्वाद विफल इतरप्रयोगः । साफल्यं यदिषुनरेति नां तत् कि फ्लेशाय स्वयमुनायिनेयम् ॥१६॥ तन्मुख्यं विधिनियमद्वयामदुक्तं स्याद्वादश्रमणोदितस्तु गौण : एक स्मिन्नुम मिहान योधारणे मुख्यत्व भवति हि तद्द्वयप्रयोगात् ॥२० मुख्यत्वं भवति विनक्षितस्य साक्षात् गोणत्वं यजति विवक्षितों न यः स्यात् । एकस्मिंस्तदिक्षितो द्वितीयो गौणत्वं दधदुपयाति मुख्यसख्यम् ।। २१ ।। धत्तं स विधिरमित निषेधमैत्री साकाक वहति विधिनिषेधत्राणी । स्वात्कारण समर्थितात्मवयाख्याती विधिनियम निजार्थमित्थम् ॥२३॥ - लघु तत्र स्फोट अ. १७ "अतत्वमेव प्रणिधानसौष्ठवात् तवेश ! तत्त्वप्रतिपत्तये परम् । विषं वमन्त्योऽप्यामृतं भरन्ति यत् पदे पदे म्यास्पदसंस्कृता गिरा || १ | - वहीं, ४. २० स्वपाद विधिरयमच्या निषेधः क्षेत्राद्यं रपि हि निजेतरः क्रमोऽ । seged: प्रथममि प्रताय मेरी निर्वाध निजविषये चरन्तु यदा ।। लघु तन्त्र स्फोट. १८२५
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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