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________________ ४५४ ] । प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व अनेकांतमयी वस्तु स्वरूप को वे मूर्तिमन्त रूप में अवलोकन करते हुए स्मरण करते हैं। वे लिखते हैं कि पर द्रव्यों से भिन्न, अपने स्वरूप से अभिन्न प्रात्मा के अनंतधर्मों के रहस्य को प्रकाशित करने वाली अनेकांतरूपमूर्ति । जिनवाणी। सदाकाल ही जगत् में प्रकाशित रहे ।' तत्वदीपिका टीका में प्रारम्भ में अनेकांत का स्मरण करते हुए लिखा है कि जो अनेकांत मय तेज महामोह साप अंधकार समह को लीलामात्र में नष्ट करता है तथा जगत् के स्वरूप को प्रकाशित करता है ऐसा अनेकांत तेज सदा जयवन्त रहे । समयव्याख्या टीका के मंगलाचरण में लिखा है कि उस परमात्मा को नमस्कार हो जो सहजानंद तथा सहजवतन्यप्रकाशमय होने से महान है लथा अनेकांत में जिसकी महिमा स्थित है। मौलिककृति पुरुषार्थसिद्धयुपाय में भी अनेकान्त को बन्दना करते हुए लिखा है कि जन्मान्धपुरुषों के हस्तिविधान का निषेध करने वाले, समस्त गयों से प्रकाशित वस्तू स्वरूप के विरोध को दूर करने वाले, अनेकान्त को नमस्कार करते हैं। वह अनेकांत उत्कृष्ट जैन सिद्धान्त का प्राण है ।' लघु तत्त्वस्फोट में राग को जीतने वाले, अनेकांत से सुशोभित, अविनाशी चैतन्यकला के विलाय से स्पष्टता को प्राप्त रानालेज वाले तथा कर्म-शत्रु विजेता जिनेन्द्र को नमस्कार किया है । इस प्रकार स्पष्ट है कि अमृतचन्द्र अनेकांत के अनन्य उपासक एवं अनेकान्त में गहरी आस्था रखने वाले थे। वे अनेकान्त के महत्स्त्र में भली भांति परिचित थे । १ ख. सा क. २. हेनोल्नुनमहामोहतमस्तोमं जयत्यदः । प्रकाश पज्जगत्तत्तमनेकान्तमयं महः ।। -प्रवचनसार, तत्वदीपिका टीफा, पद्य-२ ३. सहजानन्द चैतन्य प्रकागाय महीयसे। नमोऽने कात विधानामहिम्ने परमात्मने ।। -चास्तिकाय समयव्याख्या टोका,पद्य १. ४. परमागमस्य जीवं निषिद्धजात्यन्ध सिन्धु रविधानम् । ___ सकलनविलासिताना विरोध मथनं नमाम्पनेकान्तम् । पु. सि. पद्य २, ५. जिननाय जिनरागाय नमोऽनेकान्त शालिने । अनंतचित्कलास्कोट स्पृष्टसप्टात्मतेजमें । लघु त. स्फोट, अध्याय १२ पद्य १.
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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