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। प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत तथा शेष नय विरोधी धर्मसुचक युगलों पर आधारित हैं। इन ४७ नयाँ । के आश्रय से एकमात्र अात्मा का निरूपण किया है ।' समस्त नयों का ३ प्रकारों द्वारा भी निर्देश :
उपर्युक्त समस्त नयों द्वारा निरूपित एक आत्मा का तीन प्रकार से विवेचन किया है शब्दरूप, ज्ञानरूप तथा अर्थरूप । वहाँ ज्ञान रूप प्रात्मा (समय की प्रसिद्धि के लिए, शब्दरूप प्रात्मा के सम्बन्ध से, अर्थरूप प्रात्मा . ] को प्रकाशित किया जाता है। यही नथ तथा पर्यनय भी नही। जाता है। अन्यत्र कर्मनय तथा ज्ञाननय २ प्रकारों का भी उल्लेख है। वहां पराश्रित क्रियाकाराष्ट्र को दर्शाने वाले समस्त प्रकार के व्यवहार नयों को कर्मनय से तथा परमभाव-ज्ञानमयी शुद्धात्मस्वभाव ग्राही निश्चय नय को जाननय नाम से अभिहित किया गया है। इस तरह नयों के भेद प्रभेदों के कथन में प्राचार्य अमृतचन्द्र ने अत्यंत स्पष्ट एवं विहंगम दृष्टि रखी है। निश्चय व्यवहार नयों में परस्पर सम्बन्ध :
उक्त दोनों नयों के स्वरूप, लक्षण प्रकार तथा प्रयोजन को स्पष्ट करने के अतिरिक्त प्रा. अमृतचन्द्र ने उन दोनों में प्रतिपाद्य प्रतिपादक, साध्यसाधक तथा निषेधक-निध्य आदि सम्बन्धों पर भी प्रकाश डाला है। इन सम्बन्धों के स्पष्टीकरण हेतु उन्होंने अपने ग्रंथों में पर्याप्त प्रकाश डालकर उनके समुचित एवं संतुलित महत्त्व को भी प्रदर्शित किया है, जो इस प्रकार है :प्रतिपाद्य-प्रतिपादक सम्बन्ध :
निश्चयनय एक अभेद-अखण्ड ज्ञायकस्वभावी प्रात्मा का प्रकाश का है परन्तु अनादि अज्ञान के कारण एक चिदानन्द ज्योति प्रात्मा के ज्ञान रहित अज्ञानी जनों को सीधे निश्चय कथन से अभेद प्रात्मा का वाच्यपना अनुभव में - पकड़ में नहीं आता, इसलिए दर्शन, ज्ञान, चारित्र नादि भेद करके -- - - १. प्रवननमार तदीपिका, परिशिष्ट । २. पंक्षास्तिकाय ना. ३ की टोका |-"अन पाद ज्ञानार्थ रूपेशा विविधाऽभित्र येता
समयशब्दस्य"""|'''''तद | जानसमयप्रसिदव्यर्थ समयसम्बन्यतार्थ
समयोऽभिधातुमभिप्रेतः । 5. समयमार कलशा-१११.
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