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| प्राचार्य अमृतचन्द्र व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
ही उल्लेख याचार्य अमृतचन्द्र के पूर्ववर्ती आचायों द्वारा भी प्रमाणित होता है । खण्डागमकार ने भी स्पष्ट लिखा है कि तीर्थकरों के वचनों के सामान्य प्रस्तार का मूल व्याख्यान करने वाला द्रव्यार्थिक नय है और उन्हीं वचनों के विशेष प्रस्तार का मूल व्याख्याता पर्यायार्थिक नय है । योग सभी नय इन दोनों नयों के ही प्रभेद है ।" "नयचक्र" प्रणेता माइल्ल धवलन भी उक्त दो ही भेदों का उल्लेख किया है | अनेकांती आचार्य अमृतचन्द्र ने सभी टीकाएं मुख्यतः दोनों नयों के आश्रय से लिखी है । पंचास्तिकाय की समयव्याख्या नामक टीका में इसका संकेत उन्होंने टीका के आरम्भ में ही किया है कि जो सम्यग्ज्ञान रूपी निर्मल ज्योति की जननी है तथा दोनों नयों के प्राश्रित है ऐसी समयव्याख्या नाम की टीका कहीं जाती है।
नयों के अन्य प्रभेदों का उल्लेख :
सर्वप्रथम श्राचार्य अमृतचन्द्र ने अपनी श्रात्मख्याति टीका में भूतार्थस्वरूप निश्चय तथा प्रभूतार्थ- वरूप व्यवहार इन दो नयों की चर्चा की। तत्पश्चात् निश्चय नय के ही मूलतः दो भेद दर्शाये एक द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक | अभूतार्थप व्यवहार के भी सद्भूत तथा अद्भुत ये दो दूसरा भेद भी किये तथा अद्द्भुत व्यवहार के भी अनुपचारित और अचरित भेदों का उल्लेख किया है। प्रसंगवशात् याचार्य श्रमृतचन्द्र ने नयों के उक्त भेदों का निर्देश तथा उनके ग्राश्रय से कथन भी किया है। यहां उनके द्वारा उल्लिखित भेद प्रभेदात्मक नयों को प्रस्तुत किया जाता है ।
सद्भूत व्यवहार नय :
व्यवहार दो प्रकार का कहा गया है, सद्द्भुत तथा श्रसद्भूत वहां एक वस्तु विषयक व्यवहार को लद्भूत व्यवहार तथा भिन्न वस्तु विषमक व्यवहार को प्रसद्भूत व्यवहार कहते हैं ।" स्वभावतः वस्तु एक भेद
१. धना पु. १, गाथा ५..
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नवगा. १८३ तथा आलाप पद्धति गा. ४. पंचारिकाय, समयव्याख्या टीका, पथ
३.
४. व्यवहारो द्विविधः सभूतव्यवहारोऽसद्द्भूतव्यवहारश्च । तवस्तुनयः सद्भूत व्यवहारः । भिन्नवस्तुविषयोऽसद्भूतव्यवहारः ।
आलापपद्धति, सूत्र नं. २२०-२२२ तक |