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________________ दार्शनिक विचार | ४३ १ नयचक्र संचालन पट्टु गुरु थे। ऐसे हो गुरु आत्मकल्याण हेतु आश्रय करने योग्य होते हैं | आचार्य अमृतचन्द्र की नयचक्र संचालनपटुता का एक सुन्दर उदाहरण यह है कि एक स्थल पर वे सम्यग्दर्शन, सम्याज्ञान तथा सम्यकूचारिय रूप रत्नत्रय से बंध होने का निषेध करते हैं । " साथ ही इस शंका का भी स्पष्ट शब्दों में निराकरण करते हैं कि श्रागम में सम्यक्त्व तथा चारित्र से तीर्थंकर तथा आहारक द्वय प्रकृतियों का बंध होना लिखा है। वे लिखते हैं कि उक्त कथन नथ के ज्ञाताओं को दोष का कारण नहीं है। क्योंकि सम्यक्त्व तथा चारित्र के सद्भाव में योग और कषाय के द्वारा उक्त प्रकृतियों का बंध होता है । सम्यक्त्व एवं चारित्र से बंध नहीं होता, बंध होने में दोनों उदासीन होते हैं फिर भी सम्यक्त्व और चारित्र के सद्भाव की मुख्यता एवं महत्ता दिखाने के लिए उपचार (व्यवहार) मे उन्हें बन्ध का कारण कहा गया है। वास्तव में वे यंत्र के कारण नहीं है। यदि कोई पुनः शंका करे कि रत्नत्रय के धारक श्रेष् मुनियों को भी देवायु तथा अन्य उत्तमप्रकृतियों का गंध होना सर्व लोक में भली भांति प्रसिद्ध है तो यह कथन किस प्रकार घटित होगा ? इसके समाधान में कहा गया है कि सम्यक्व, ज्ञान तथा चारित्र रूप त्यती एकमात्र निर्वाण का ही कारण होता है। अन्य गति का कारण नहीं है तथापि तत्रधारी के जो देवगति आदि के योग्य पुण्य प्रकृतियों का प्रान्त्रव (तथा बंध होता है, वह बंध अपराध शुभोपयोग का है. रत्नत्रय का नहीं ।' उक्त सर्व जगत् प्रसिद्ध कथन रू- व्यवहार का कथन दर्शनमात्मविनिश्चितिरात्मपरिज्ञानमिध्यते बांधः । थिस्मिनि चारित्रं कुल एतेम्योगवति बन्धः । पु. सि. पद्य २१६. सम्यक्त्वचारिताम्यां तीर्थंकराहारको बन्धः । वोऽभ्युपदिष्टः समये न नयविशं सोग दोपाय ॥ पु. नि. पद्य २१०. मचरित्रे तीर्थंकराहार बन्धको मन्तः योगका नानति तत्पुनरस्मिन्नुदासीनम् ॥ पु. मि. पद्य २१५. '' नमेवं सिद्धयति देवायुः प्रभृतिसत्प्रकृतित्रः । जनम्प्रसिद्धो रत्त्रधारिणां मुनिवराणाम् ।। वही पद्य २१६. रत्नययमिह हेतुनिर्वाणस्यैव भवति नाव्यस्थ । आजति यत्तु पुष्यं शुभोवयोगोऽयमपराधः ॥ बही पद्य २२०. १. ५.
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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