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। प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
निश्चय-व्यवहार नय ज्ञान की प्रावश्यकता र महत्व :
प्राचार्य उमास्वामी (गृद्धपिच्छाचार्य) ने वस्तुस्वरूप के अधिगम (समझने) का उपाय प्रमाण तथा नयों को बताया है। वस्तू का स्वरूप अनेकांतमय है। अनेकांतस्वरूप का दिग्दर्शन या प्रकाशन स्याद्वाद (सापेक्ष कथन) द्वारा ही सम्भव है । स्थावादमयी निरूपण नयों के प्राश्रय से ही सम्भव है। नयज्ञान बिना एकांत.यक्ष का प्राग्रह नहीं मिट सकता। एकांतपक्ष का आग्रह मिटे बिना अनेकांतमय वस्तुस्वरूप की प्राप्ति नहीं हो सकती। वस्तुम्वरूप की पापिट जिना' समादृष्टि नहीं हो सकता तथा सम्यग्दृष्टि हुए बिना मोक्षमार्ग की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि तथा फल प्राप्ति नहीं हो सकती अतः मोक्षमार्ग में पाने के लिए, वस्तुम्वरूप समझने के लिए, जिनदर्शन का दर्शन करने अथवा आत्मदर्शन करने के लिए नयों का ज्ञान होना सर्वप्रथम आवश्यक है। प्राचार्य देवसन मानते हैं कि जो पुरुष नय दृष्टि से रहित हैं, उन्हें वस्तुस्वभाव की उपलिब्ध (परिज्ञान) संभव नहीं है, तथा वस्तुस्वभाव के ज्ञान बिना सम्यष्टि की हो सकता है? अर्थात नहीं हो सकता । २ नयज्ञान के बिना मनुष्य को स्याद्वाद की प्रतिपत्ति नहीं होती, अत: जो एकांतपक्ष के भामह से मुक्त होना चाहता है उसे नय जानना चाहिए। नय को तत्त्वज्ञान की प्राप्ति का साधन तथा तत्त्वज्ञान की प्राप्ति को परम कल्याण का उपाय कहा गया है। अतः नयों के ज्ञान की प्रावश्यकता तथा उनके स्वरूप का विवेचन भी महत्वपूर्ण है। नय का स्वरूप :
प्राचार्य पष्पदंत एवं भूतबलि प्रणीत षट्खण्डागम सूत्र में नय का लक्षण इस प्रकार उलिखित उच्चारित अर्थ, पद तथा उसमें निहित निक्षेप को समझकर पदार्थ को ठीक निर्णय तक पहुंचा देते हैं इसलिए वे नय कहलाते हैं । यह नय का निस्लत्यर्थ है। वस्तुतः अनेकांत धर्ममयी १. "प्रमाधिपाः" (नत्त्वार्थभूज अ. १, मूत्र ६) ६. जे गा यदिदि बिहूणा ताण ण वत्थू सहाव उवलद्धी ।
उत्सहाव विहगा सम्माविट्टि कह होति ।। नयचत्र, ग'. १. ३. जम्हा ण णयेन विणा होई वस्स सियघाय पविती ।
सम्हा सो णायबो एयंत हत्त, कामेण । । नयचक्र, गा. १७४. ५. धवला पु. १. पृ. १०, ५. धवला पु. १, पृ. ११
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