SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 457
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 36-- ४२६ । : प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व प्रसाद गृण का प्रयोग : प्राचार्य अमृतचन्द्र की श्रेष्ठ कृति पुरुषार्थसिद्धयुपाय प्रसादगुण युक्त रचना है । उममें प्रयुक्त सभी पद्य सुगम, स्पष्ट तथा प्रसादगुण मण्डित हैं। उदाहरण के लिए इन पद्यों का अवलोकन कीजिये - अर्था नाम य एते प्राणा एते बहिश्चराः प्रसाम् । हरति स तस्य प्राणात यो यस्य जनो हरत्यर्थान् ।।' न मधं नवनीतं पिशितं च महाविकृतयस्ताः । पलभ्यन्ते न वतिना दल या जमरतव ।। प्राचार्य ऋभतचन्द्र में माधुरी हेतु उपजाति तथा बसंततिलका लंद का, प्रोजगण के लिए मुख्यतः पार्दूलविक्रीडित तथा प्रसादगुण को मन्दाक्रान्ता छंद का प्रयोग मुख्य रूप से किया है । इस तरह उनकी कृतियों में अन्य नभस्त गुणों के साथ भाधुर्श, योज तथा प्रसाद इन लोनों गुणों का मुचित प्रसाद हा है। Annnvimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm. अमृतचन्द्र कला के तीन अर्थ अछर अरथ में मगन रहै मदा काल, महासग्य दवा जैसी बवा कामगविको। रमल अबाधित अलख न गावना है, पाचना परम सुद्ध भावना है भविकी ।। मिथ्या तिमिर अपहारा वर्षमान धारा, जैसी उर्भ जामलौं किरण दोप रविवार ऐसी है अमतचन्द्र काला विधाहप धर, अनुभी दसा गरथ टीका बुद्धि कबिकी ।।५।। अर्थ – अमृतचन्द्र स्वामी की चंद्रनाला. अनुभव को, टीका को और कविना की तीन रूप है तो सदासरल प्रक्षर अर्थ अर्थात् मोक्ष पदार्थ से भरपुर है. सेवा करने से कामधेन के सनान महा सुखदायक है। इसमें निर्मल और ३ शुद्ध मना के गुण- समूह का वर्णन है, परम पवित्र है, निर्मल है और ६ मम जीवों के चितवन करने योग्य है. मिथ्याव का अन्वकार नष्ट करने वाली है. पहर के सूर्य के समान जननिशील है। ___ - कविवर बनारसीबारा, नाक समयसार, माथ्य जाधक हार, ५२४ SmmmmmmsammwwwmummMInamammMiwar १. २. पु. सि. गद्य नं. १०३. वही, पद्य नं. ७१
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy