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कृतियां ।
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अन्य गुणों तथा विशेषताओं की भांति रश संघटना भी सुष्टुरूपेण सम्पन्न
गुण
साहित्यकारों ने मुख्यतः तीन गुण माने हैं माबुर्ग, प्रोज तथा प्रसाद । माधुर्य गुण के अभिव्यांजक वर्ण द इद, को छोड़कर अन्त्यवों छ, अ, न्, म्, ण, से संयुक्त क् से म् पर्याप्त वर्ण हैं, प्रोज के व्यंजक वर्ष क, छ, त्, प्, ट्, ग्, ज्, द् ब्, ड् वर्ण अपने वर्ग के प्रथम वर्ण के अन्य वर्ण प्. झ. घ, भ, द, के संयोग से निर्मित पद हैं, तथा प्रसाद के अभिव्यंजक वे वर्ण हैं जिनका अर्थज्ञान श्रवणमात्र से हो जाय ।' अस्तु उक्त आधार पर हमें अमृतचन्द्र के साहित्य में तीनों प्रकार के गुणों का सौन्दर्य उपलब्ध होता है । यथा :माधुर्य गुण के उदाहरण :..
सद्य एवोद्यदमंदानंदमयानुजलझल लोचनपात्रस्तत्प्रतिपद्यत एव ।' सद्य एवोद्यदमंदानंदांतः सुन्दरबंधुरबोधतरंगस्तत् प्रतिपद्यत एव ।'
आत्मस्वभावं परभावभिन्नमापूर्णमाद्यन्त विमुक्तमेकम् ।
विलीनसंकल्प विकल्प जालं प्रकाशयन् शुद्धनयोम्युदेति ।। अोज गुण का प्रयोग :
अनेकांतकलितसकलज्ञातृज्ञेयतत्वयथावस्थितस्वरूपपाण्डित्यशोग्डाः सन्तः समस्त बहिर शान्तरसङ्गति परित्याग विवितान्तश्चकचकायमानान्तशक्तिचैतन्यभास्वरात्मतत्त्वस्वरूपाः स्वरूपगुप्तसुषुप्त कल्पान्तस्तत्ववृत्तितया विषयेषु मनागप्यासक्तिमनासादयन्तः समस्तानुभाववन्तो भगवन्तर: शुद्धा एवासंसारघटितविकट कर्म कबाट विघटन पटीयसाध्या. वसायेन प्रकटोक्रियमाणावदाना मोक्षतत्वसाधनतत्वमबबुध्यताम् ।
१. काव्यप्रकाश -- अष्टमोल्लामः । २. समयसार गाथा ८ की टीका । ३. समयसार गाया की टोका।
सामनार कलण ?०. ५. प्र-चनसार गाथा १३३ टीका ।