SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .... कृतियाँ । ! ४२३ प्रशमरस', महारस', जानरम, परमानन्द सुधा रस', निजरस', आदि पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग उनकी कृतियों में हुअा है । इसे ही एक स्थल पर ज्ञायकभाव मे परिपूर्ण महास्वाद पद भी व्यवहृत हुआ है । अन्यत्र इसे शुद्धोपयोग रस नाम से भी पुकारा गया है। इस तरह सर्वत्र शांतरस ही प्रमुख रस के रूप में अभिव्यक्त हुमा हैं। साथ ही वीररस, अद्भुतरस का भी यथास्थान दिग्दर्शन हुआ है । उदाहरण के लिए प्रास्रव रूप योद्धा को समरभूमि में अजेय ज्ञानरूप धनुर्धारी योद्धा जीत लेता है, इस कथन में स्पष्टतः वीर रस झलकता है - यथा - प्रथमहामद निर्भरमन्थर, समररंगपरागतमास्रवम् । अयमुदारगंभीरमहोदयो; जयति दुर्जय बोधधनुर्धरः ।। इसी तरह वीररस पूर्ण वर्णन अन्य कई स्थलों पर उपलब्ध होता है। इसी तरह अद्भुतरस का प्रयोग करते हुए वे लिखते हैं कि हे नाथ केवलदर्शन एवं केवलज्ञान की एकाग्नता से तन्मय उपयोगरूपी तेज के सर्वतः विस्तृत होने पर, क्षणता को अपनी तरह धारण करने वाले आपकी, समस्त जगत् में व्याप्त होने हेतु अद्भुत रस की प्रस्तावना करने वाली, दूर तक व्याप्त अनंतवीर्य सम्बन्धी गौरव की ये विस्तृत सम्मू नाएँ एवं अत्यधिक चेष्टाएँ बेगपुर्वक, अतिशय रूप से प्रकट हो रही है । उनका पद्य इस प्रकार है - बोधक्यमयोपयोगमहसि व्याजम्भमाणेऽमित्, एतेक्षण्यं संदधतस्तत्रेश ! रभसादत्यन्तमुद्यन्त्यमूः । विश्वव्यापिकृते कृताद्भुतरसप्रस्तावनाडम्बरा, दुरोत्साहितगाढ़वीर्यगरिमव्यायामसम्मूछनाः ।।२३।। नमपसार कसण, २३३, २. लघुसन्धस्फोट, अ. २३, पद्य ६ तथा य.४, पद्य २. ३. समयसार कलश २२२. ४, प्रवचनसार, तत्त्वतीपिका पश्च क्र. ३. ५. नचुतत्त्वस्फोट, अ. २४, पञ्च २०/स. कलश १२५. ६. समयसार, कलम १४०. ७. लघुतत्वस्फोट. अ, ३, पद्य ६. ८. लि. स. सा. फलश १३३, १६३, १७८ प्रादि । ६, लघुतत्त्वस्फोट, प्र. २४, पद्य, २३.
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy