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। प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व नवंटक भी एक अप्रचालित छंद है। वस्तुस्थिति अथवा सैद्धान्तिक नियम दिखाने के लिए इस छंद का प्रयोग किया है । उनके सम्पूर्ण साहित्य में मात्र समयसार कलशों में एक छंद में नर्दटक का प्रयोग हुआ है 11
हरिणीचंद का प्रयोग जिनेन्द्र के असाधारण रूप तथा प्रगट गुणों के वर्णन में किया है जो निश्चित ही हृदयहारी है। अस्ति नास्ति रूप अनेकांतमयी वस्तु का निरूपण प्रणा में शिकलोमावान का प्रतीक है कि आचार्य अमृतचन्द्र को अनेकांत तथा स्थाद्वादरूप कथन करने में अत्यधिक हर्ष होता था । मंदाक्रांता तथा मत्तमयूर छंद अमृतचन्द्र के प्रात्मानुभवानन्द के अभिव्यंजक है।
इस प्रकार अमृतचन्द्र द्वारा प्रयुक्त २५ प्रकार के प्रचलित तथा अप्रचलित उभय प्रकार के छंदों के अनुशीलन से यह बात स्पष्ट प्रमाणित हो जाती है कि प्राचार्य अमृत चन्द्र का प्रभुत्व संस्कृत भाषा, शैली, अलंकार, आदि की तरह छंदोबद्ध रचना करने में भी था। इससे उनकी कविप्रतिभा तथा सर्वतोमुखो व्यक्तित्व का भी पता चलता है। सर्वत्र छंदों के प्रयोग की वैज्ञानिकता को देखते हुए उन्हें वैज्ञानिक छंद प्रयोग शैली का पुरस्कर्ता भी कह सकते हैं।
रस
रस के स्वरूप के सम्बन्ध में अध्याय तृतीय के नाटककार तथा काव्यकार के रूप में अमृतचन्द्र के व्यक्तित्व निदर्शन से बहुत कुछ कहा जा चुका है । प्राचार्य अमृत चन्द्र की कृतियों में प्रयुक्त प्रमुख अथवा अंगीरस शांत रस है । इसी शांत रस' के लिए ही स्वरस'; चैतन्यरस, परमार्थरस,
१. ममयसार कलश, पद्म २११. २. ल. त. स्फोट -- अध्याय २३ वो ३. वहीं, अध्याय १७ वी ४. वही. प्र. २२ तथा १८. ५. रामयसार कालण ३२. ६. वही, कानश १६०, सया गा, ६ को टीका । ७. समयसार गाथा की टीका । ८, बही, गाथा २०३ की टीका ।