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________________ कृतियां 1 [ ४२१ वसंततिलका छेत्र में आत्मानुभूति का ग्रानन्द तथा मस्ती प्रगट की है । यथा : आत्मानुभूतिरिति शुद्धनयात्मिकाया, ज्ञानानुभूतिरियमेव किलेति बुद्धवा । आत्मानमात्मनि निवेश्य सुनिष्प्रकम्प, मेकोऽस्ति नित्यमवबोधघनः समन्तात् ।। ११ ।। पृथ्वी छंद अनुभूति की गम्भीरता तथा अखण्डता के निरूपण में प्रयोग किया है। 'पृथ्वी' शब्द भी गंभीरता तथा अखण्डता का प्रतीक है अतः उसके माध्यम से अभिव्यक्त विचार भी वैसे ही गम्भीर तथा प्रखण्ड हैं ।' पृथ्वी एक सामान्य, सुप्रसिद्ध वर्णवृत्त है परन्तु वह मंदाक्रांता तथा शिखरिणी वर्णवृत्तों की भांति लोकप्रिय नहीं है। फिर भी अमृतचन्द्र ने इसका उपयोग किया है । शिखरिणी छंद का प्रयोग निष्कर्ष रूप कथन करने तथा शंका के समाधान में भी हुआ है । उक्ति पूर्ण कथनों की अभिव्यक्ति भी शिखरिणी छंद में ही हुई है । " स्थानता एक प्रचलित है जिसका प्रयोग अमृतचन्द्र ने अनुभव के प्रदर्शन में किया है | यहाँ इसका एक सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत है । यथा ५. ६. ७. - चित्स्वभावभरभावितभावा भावभावपरमार्थतयैकम् । बंधपद्धतिमपास्थ समस्तां चेतये समयसारमपारम् || शालिनी छंद भी मालिनी की तरह निष्कर्ष रूप कथन में सुशोभित हुआ है । सहेतुक कथन के लिए भी शालिनी का प्रयोग कवि ने किया है। " १. समयसार कलश, क्र. १३. 2. Annals of the Bhandarkar Oriental Research Institute Pune, Vol. 58-59, 1977-78. Page 627. ३. समयसार कलश ऋ. १०४, १०५, १६५. ४. वही, पद्म १८०. वहीं, पच ९१. वहीं, पच ३७, ११३. वहीं, पद्म २१६.
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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