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________________ । T lace ४२० । । प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत प्राक्रम्याकुलकुष्ट मर्ममहिमा प्रोत्तनिता नस्त्विषो, भावानां ततयो निरन्तरमिमामुन्धन्ति जीवं किल ।।' मालिनी छंद का प्रयोग अात्मानुभति या आत्मज्योति के प्रदर्शन के लिए किया है । यथा - चिरमिति नवत्वच्छन्नमुन्नीयमानं कनकमिव निमग्नं वर्णमालाकलाये । अथ सततविविक्तं दृश्यतामेक रूप प्रतिपद-मिदमात्मज्योतिरुद्योतमानम् ।। अन्य स्थलों पर प्रात्मकन्याण की प्रेरणा या उसका उपदेश देने के लिए भी मालिनी छंद का ही प्रयोग किया है। कहीं कहीं सहेतुक कथन करने स्पष्टीकरण करने, व्याख्या करने और शुभभावना व्यक्त करने के लिए भी मालिनी छंद का ही उपयोग किया है । अनुष्टुप् छंद का प्रयोग दार्शनिक तत्त्व निरूपण हेतु ही मुख्य रुप से किया है। तत्त्वार्थसार मुख्यत: अनुष्टप् छंद में ही रचित है। उसमें श्राद्यान्त दार्शनिक तत्त्वों का तथा मुनि व धावक के प्राचारों का ही वर्णन है । अन्यत्र मंगलाचरण तथा उपसंहारात्मक कथन करने हेतु भी अनुष्टुप् का ही प्राश्रय लिया है। उपजाति छेद का प्रयोग आत्मस्वरूप प्रदर्शन के लिए किया है। उदाहरण के लिए प्रात्मा का स्वरूप निरूपण करते हुए वे लिखते हैं - प्रात्मस्वभावं परभावभिन्न - मापूर्ण माद्यन्तविमुक्तमेकम् । विलीन संकप विकल्प जालं, प्रकाशयन् शुद्धनयोभ्युदेति ।। लश्रुतस्वस्फोट में २५ पद्यवाले तीन अध्यायों की रचना उपजाति छंद में ही की है जिसमें जिनेन्द्र के उत्कृष्ट स्वरूप की ही महिमा विभिन्न प्रकार से प्रस्तुत की गई है। १. लघूतस्वस्फोट, अध्याय २४. पन नं. २२. २, समयसार कला, वां पद्य । ३. देखिये, समयसार कलश क्र. ११, २०, २२, २३ और 4.9. ४, वही, पद्य क्र. ३ तथा ३१. बही, पद्य १, २, ७, १५, ३६, ६. समयसार कालण पद्य १०.
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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