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छंब प्रयोग को वैज्ञानिक :
जहाँ जिस प्रकार के मनोभाव या अनुभव को व्यक करना होता है, वहाँ तदनुकूल भावचाही तथा अर्थप्रकाशी छंदी का प्रयोग होता है, यही छंद प्रयोग की वैज्ञानिकता है। अधिकांश बंद तो अपनी महत्ता तथा उपयोगिता को अपने (सार्थक ) नाम द्वारा ही प्रकट करते हैं। इसी महत्त्व को समझकर अमृतचन्द्र ने छंदों को विचाराभिव्यक्ति का सर्वोत्कृष्ट साधन बनाया है | आचार्य वीरनंदि ने भी उत्कर्ष और अपकर्ष के अनुसार छंदों में परिवर्तन करने के प्रयोग किये हैं। उन्होंने दर्शन या प्राचार सम्बन्धी तथ्यों के निरूपण में अनुष्टुप् छंद को अपनाया है। वियोग तथा करुणा के चित्र में मन्दात्रता, मालिनी और उपजाति छंद प्रयोग किया है। वस्तु व्यापार वर्णन को सशक्त बनाने के लिए वसन्ततिलका तथा नगर, सरोवर, ऊषा आदि के चित्रण में पुष्पिताग्रा, वनस्थ, प्रहर्षिणी और ललिता छंदों को अपनाया है । इस तरह विषय निरूपण में छंद वैविध्य चमत्कारोत्पादक होता है ।" महाकवि क्षेमेन्द्र भी सुवृत्ततिलक में लिखते हैं कि कथा विस्तार तथा शांतरस के उपदेश में अनुष्टुप् श्रृंगार तथा नायिका के उत्कृष्ट वर्णन में वसंततिलका तथा उपजाति छंद सुशोभित होते हैं । चन्द्रोदय ग्रादि विभाव भावों के वर्णन में रथोद्धता छंद अच्छा माना जाता है जबकि संधि, विग्रह तथा नोति के उपदेश में वंशस्थ छंद सुशोभित होता है । वीर तथा रौद्र रस के संकर में वसंततिलका, सर्ग के अंत में मालिनी खिलती है । युक्तिपूर्ण अभिव्यक्ति में शिखरिणी, उदारता व औचित्य वर्णन में हरिणी, शौर्य वर्णन में शार्दूलविक्रीडित तथा वेगवाली वायु वर्णन में स्रग्धरा छंद का प्रयोग उचित माना गया है। आचार्य अमृतचन्द्र ने छंदों की सार्थकता को ध्यान में रखकर आध्यात्मिक तत्त्वनिरूपण में छन्दों का समुचित वैज्ञानिक प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए "बालविक्रीडित" शब्द का अर्थ है "सिंह की विशिष्ट क्रीड़ा" अर्थात् सिंह जब अपनी विशेष क्रीड़ाएं करता है तब उसका पुरुषार्थ प्रोज तथा प्रभाव दर्शनीय होता है। आचार्य अमृतचन्द्र ने भी पुरुषार्थ या ओजपूर्ण भावों की अभिव्यक्ति के लिए शार्दूलविक्रीडित छंद का प्रयोग किया है | आत्मख्याति कलश टीका में एक स्थल पर वे लिखते हैं कि कोई सुबुद्ध जीव भूत,
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[आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
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संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान,
महाकवि हरिचन्द्र - एक अनुशीलन, पृ. ७६.
पू. १००.