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________________ कृतियाँ | 18219 1 , ८ ७१५ अनुष्टुप हैं । मौलिक ग्रंथ पुरुषार्थसिद्धयुपाय में प्राद्यन्त आर्या बंद का ही उपयोग किया है । इनकी कुल संख्या २२६ है, उनकी उपलब्ध अंतिम कृति लघु स्वस्फोट नामक स्तोत्र काव्य में १३ प्रकार के उत्कृष्ट काव्य प्रतिभा छंदों का अवतरण हुआ है । इनमें अनुष्टुप, शार्दूलविक्रीडित, उपजाति, वसंततिलका, मंद्राक्रान्ता वंशस्थ तथा वियोगिनी ये ७ तो पूर्वप्रयुक्त छंदों में से हैं। तथा मंजुभाषिणी तोटक, पुष्पिताग्रा, प्रहर्षिणी मत्तमयूर तथा हरिणी ये ६ बिल्कुल नये छंद हैं। इस तरह आचार्य अमृतचन्द्र के उपलब्ध पद्य साहित्य में २५ प्रकार के छंदों की सृष्टि हुई है जो उनके काव्यज्ञ, रसज्ञ तथा छंद विशेषज्ञ होने का स्पष्ट प्रमाण है। जिस प्रकार कवि पाणिनी ( ई. ५वीं शती) को उपजातिछंद, कविवर कालीदास को मंद्राक्रांता छंद मारवि को वंशस्थ छंद, महाकवि भवभूति को शिखरिणी छंद विशेष रूप से प्रिय थे, उसी प्रकार आचार्य अमृतचन्द्र को श्रार्या अनुष्टुप् शार्दूलविक्रीडित वसंतलिका, मंद्राक्रांता तथा उपजाति से छह छंद प्रत्यधिक प्रिय थे, इसलिए इनका प्रयोग उन्होने अपनी रचनाओं में सबसे अधिक किया है । उदाहरण के लिए उन्होंने अनुष्टुप् =११, र्या २४० वंशन्थ १५०, शार्दूलविक्रीडित १२३, उपजाति ११० वसतिलका १०५ तथा मन्दाक्रान्ता ४७ छंद अपने साहित्य में लिखे हैं। उन्होंने छंदों का प्रयोग पाण्डित्य प्रदर्शन हेतु नहीं किया है अपितु विभिन्न प्रकार के भावों तथा अनुभवों को अभिव्यक्त करने हेतु किया है। इसलिए विभिन्न छंदों का प्रयोग सहजरूप से हुआ है कृत्रिमरूप में नहीं । उनके द्वारा प्रयुक्त छंद उनकी अनुभूतियों की विभिन्न स्थितियों के परिचायक हैं। उन्होंने अपने भावों को छंदों में हालने का प्रयास उतना नहीं किया है जितना कि भावप्रवाह तथा अनुभूतियों के आवेग में अनायास ही विभिन्न छंद प्रस्फुटित हुए हैं । ये सहज प्रफुल्लित छंद गुलदस्ते की भांति यथोत्रित प्रसंगानुकूल अलंकार तथा रस सौन्दर्य से सुशोभित हैं एवं सहृदयजनों को चित्ताकर्षक एवं हृदयावर्जक हैं। उनके द्वारा प्रयुक्त छंद विभिन्न प्रकार से आध्यात्मिक रस का रसास्वादन कराने में समर्थ हैं । प्रत्येक छंद एक कला - घट की भाँति है, जिसमें अध्यात्मामृत लबालब भरा है। उनके अमृतरस को पीकर मनमयूर मल्ल, व रोमांचित होकर नांच उठता है तथा एक अदभूत् श्रभूतपूर्व परमानन्द का अनुभव करता है । | १. हिन्दी छंद प्रकाश, पृ. ३१.
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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