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________________ ४१६ ] ! आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व होती है। छंदात्मक भाषा का आकर्षण अद्भुत होता है । मानव ही नहीं अपितु पशुपक्षी तथा सर्प ग्रादि प्राणी भी लयात्मक भाषा पर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। इसलिए छंदशास्त्रों में छंद को संगीत को योनि तथा काव्य की जान कहा जाता है । छेदों में गुम्फिल भाव सहस्रों श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते हैं। छंदों का प्रभाव हृदय तक ही सीमित नहीं होता अपितु मस्तिष्क के विकास में छंदों का उपयोग वैज्ञानिक माना जाता है । स्मरण शक्ति एवं बुद्धि की प्रखरता के लिए छंद बहुत ही उपयोगी होते हैं ।' छंदोबद्ध साहित्य चिर गौर चमत्कारपूर्ण होता है, साथ ही दीर्घजीवी भी। छंदों में प्रक्षेपण (मिलावट आदि) की भी संभावना कम हो रहती है। लेखक के विचारों की मौलिकता, प्रामाणिकता तथा विश्वसनीयता बनी रहती है। छंदज्ञान के बिना साहित्यकार की साहित्यिक क्षमता का मूल्यांकन कर पाना असंभव है। यहाँ उक्त कसौटी, छंदों की महत्ता एवं वैज्ञानिकता, के परिप्रेक्ष्य में आचार्य अमृत चन्द्र के व्यक्तित्व का अवलोकन तथा कृतित्व का मूल्यांकन किया जा रहा है। प्राचार्य प्रमृतचन्द्र ने अपनी अनुभूतियों तथा पूर्वाचार्यों की अध्यात्म वाणो के रहस्यों को विभिन्न छंदों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। कुन्दलान्द प्रणीत समयप्राभूत पर लिखित 'आत्मख्याति" टोका में प्रागत पद्यों को विभिन्न छन्दों में वैज्ञानिक ढंग से ढाला है। "आत्मख्याति" में उन्होंन १६ प्रकार के छंदों का प्रयोग किया है । वे छंद हैंअनुष्टुप्, मालिनी, शार्दूलविक्रीड़ित, उपजाति, वसंततिलका, पृथ्वी, आर्या, स्वागता, शालिनी, मंद्राकान्ता, स्रग्धरा, उपेन्द्रबज्रा, स्थोद्धता, इन्द्रयचा, दूताबिलम्बित, शिखरिणी, नर्दटक, वंशस्थ और वियोगिनो । दूसरी कृति प्रवचनसार की तत्वप्रदीपिका नामक टीका है जो प्रमुखतः गद्य में ही निर्मित है परन्तु उक्त घटीका भी आनार्य अमृतचन्द्र कबीन्द्र की कविप्रतिभा से अछुती नहीं रह पायी है । इसमें भी बिभिन्न सुप्रसिद्ध छंदों में २१ 'पद्यों की सृष्टि हुई है। इसमें छंदों में स्रग्धरा, मंदाक्रांता, वसंततिलका, अनुष्टुप्, शालिनी, इन्द्रवज्ञा, शार्दूलविक्रीडित तथा मालिनी का प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार पंचास्तिकाय की समय व्याख्या नामक गद्य टीका में भी 5 पद्यों की रचना हुई है । पद्यटीका में "तत्त्वार्थसूत्र" की "तत्त्वार्थसार" नामक टीका में मुख्यपने से तो अनुष्टुप् छंदों का प्रयोग हुआ है तथा शालिनी, प्रार्या और वंसततिलका छेद भी प्रयुक्त हुए हैं। ७२० पद्यों में १. हिन्दी छन्दप्रकाश, भूमिका पृ. ११ . . .-.-....-
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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