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________________ कृतियाँ । माणबक एव सिंहो यथा भवत्यनवगीत सिंहस्य । व्यवहार एव हि तथा निश्च यतां यात्य निश्चयज्ञस्य ।।' व्य तिरेक प्रलंकार : कवि ने एक स्थल पर जहां "उदितममृतचन्द्रज्योतिरेतत्समंताज्जवलतु विमलपूर्ण निःसपलस्वभावम् ।। २ पंक्तियाँ रची हैं, वहाँ उपमा, रूपक तथा अनप्रास अलंकार के साथ व्यतिरेक अलंकार का सम्मिश्रण भी किया के ग्रात्मा को अमृतमय चन्द्रमा के समान कहने पर भी, वहाँ प्रयुक्त विशेषणों द्वारा चन्द्रमा के साथ व्यतिरेक भी प्रदर्शित किया है, क्योंकि "ध्वस्तामोह" विशेषण अज्ञानधिकार का दुर होना बतलाता है, "विमलपर्ण" विशेषण लाछन रहितपन तथा पर्णता को सचित करता है. 'नि:मपत्नस्वभाव'' विशेषण राहुबिम्ब तथा मेघादि स पाच्छादित न होने को बतलाता है, और "समंतात् ज्वलनु विशेषण सर्वक्षेत्र तथा सर्वकाल में प्रकाश करना स चित करता है, परन्तु चन्द्रमा एसा नहीं है, अतः व्यतिरेक अलंकार भी सुघटित होता है। इस तरह प्राचार्य अमृत चन्द्र की कृतियों के साहित्यिक मन्यांकन के अंतर्गत अलंकारों का अनुशीलन किया गया, जिससे स्पष्ट हा कि एक ओर जहाँ अमृतचन्द्र की कृतियों की भाषा प्रौड़, गम्भीराशययुक्त, सशक्त अमर्त अनुभूतियों को भी स्पष्ट करने वाली तथा विभिन्न शैलियों में माण्डित है. वहीं दूसरी ओर वह अलंकारों की विविधरंगो आकर्षक झिलमिलाहट से सुशोभित तथा सौन्दर्यान्वित भी है। इतना ही नहीं, भाषा, संली तथा अलंकारों के अतिरिक्त, अन्य भी विशेषताएँ हैं जिनसे उनका साहित्य सौरभित है। उनमें छंद, रस तथा गुण प्रादि मुख्य हैं जिन पर संक्षिप्त प्रकाश डाला जा रहा है । तीन भावावेश अथवा अनुभूति की अवस्था में प्रयुक्त भाषा छदात्मक हो जाती है । उस समय भाषा में सहज ही लयात्मा प्रवाह कूट पड़ता है। भाषा का यह लयात्मक प्रवाह ही छंद है। गद्य की अपेक्षा पद्यातमत्र या छंदात्मक भाषा विशेष प्रभावशाली, आकर्षण एवं भाववाही १. . सि , पच ७. ६. समयसार कलश, ऋ, २७६ ३. हिन्दी खुदप्रकाश, रघुनंदन शास्त्री, एम, ए. भूमिका पृ. १५.
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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