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________________ कृतियां ] [ ४१३ अब दीपकालंकार का प्रयोग भी प्रस्तुत है : कात्यैव स्नपयंति ये दशदिशो धाम्ना निरूधंति ये । घामोद्धाममहस्विां जनमनो मुष्णंति रूपेण ये | दिव्येन ध्वनिना सुखं श्रवणयोः साक्षात्क्षरतोऽमृतं बंद्यास्तेऽष्टसहस्त्रलक्षणधरास्तीर्थश्वराः सूरयः ।। इस पद्य में कारक दीपक अलंकार है क्योंकि एक ही तीर्थकर रूप कारक की अनेक क्रियाएं दिशाओं को धोना, सूर्यतेज को ढकना, मन को हरना और कानों में सुस्त्रामृत बरसाना) दिखाई गई हैं । __प्राचार्य अमृतचन्द्र कृत "लघुत्त्वस्फोट" नामक स्तोत्रकाव्य सर्वाधिक सालंकृत, क्लिष्ट एवं उच्चतम काव्य प्रतिभा का अमर स्मारक है। इसमें अलंकारों का बहुतायत से प्रयोग हुना है। इससे कवि की सर्वोत्कृष्ट काव्यशक्ति की अभिव्यक्ति हुई है। इसलिए इस काव्य के अनुशीलन से कवि का एक कुशल पालंकारिक का रूप भी मुखरित हो उठता है । इस कृति में लेखक ने जहां अनुप्रास, उपमा, रूपक तथा उत्प्रेक्षा का बाहुल्लता से निदर्शन कराया है वहीं अन्य अनेक अलंकारों की झांकी भी प्रस्तुत की है। विरोधाभास अर्थान्तरन्यास, अन्योन्य, संभावना, प्रतोप, दृष्टांत, अन्योक्ति, श्लेष, काव्यलिंग आदि अलंकारों की विविधरंगी उर्मियों से समग्र काव्य को पालोकित, चमत्कृत तथा रसाप्लावित किया है । यहाँ हम उनके प्रयोग कौशल की संक्षिप्त झलक प्रस्तुत करते हैं। विरोधाभास का सुन्दरतम उदाहरण प्रास्वाध है :नित्योऽपि नाशमुपयासि न यासि नाशं नष्टोऽपि सम्भवमुपैषि पुनः प्रसह्य । जातोऽप्यजात इति तर्कयतां विभासि श्रेयः प्रभोऽद्भुतनिधान किमेतदीदृक् ।। अर्थात् हे आश्चर्यनिधान श्रेयोजिनेन्द्र, आप (द्रव्यस्वभाव की अपेक्षा) नित्य होकर भी (पर्याप्त स्वभाव की अपेक्षा) नाश को प्राप्त होते हो और नाश को प्राप्त होकर भी पुनः उत्पन्न होते हो । इस प्रकार उत्पन्न होकर भी आप अनुत्पन्न हो ऐसा (विभिन्न दष्टियों से) विचार करने वालों को प्राप प्रतिभासित होते हो । हे प्रभु ! यह ऐसा क्यों है ? अर्थात् यह आश्चर्य की बात है। १. सममसार कलश क्र. २४. २. लघुतत्त्वस्फोट, अध्याय प्रथम, पद्य ११.
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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