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________________ कृतियां । [ ४११ मद्य मोह्यति मनो, मोहितचित्तस्तु विस्मरति धर्मम् । विस्मृतधर्माजीवो हिसामविशङ क-माचरति ।।' अनुमान प्रलंकार को प्रयोग चातुरी भी देखिये : न बिना प्राणिविघातान्मांसस्योत्पत्ति रिष्यते यस्मात् । मांसं भजतस्तमात् प्रसरत्यानिधारिता हिंसा ।' यहां प्राणियों का घात होना कारण (साधन) है, उससे मांसोत्पत्ति रूप कार्य (साध्य) का अनुमान किया इसलिए मांसभक्षी को हिंसा अवश्य होती है, यह अनुमान से सिद्ध किया अतः यहाँ अनुमान अलंकार है । गद्य टोकानों में भी इस तरह का अनुमान अलंकारयुक्त निरूपण बहुशः किया गया है। अन्योन्य प्रलंकार का निदर्शन भी दर्शनीय है : द्रव्यानुसारि चरणं चरणानुसारि, द्रव्यं मिथो द्वयमिदं ननु सव्यपेक्षम् । तस्मान्मुमुक्षुरधिरोहतु मोक्षमार्ग, द्रव्यं प्रतीत्य यदि वा चरणं प्रतीत्य ।। द्रव्यस्य सिद्धौ चरणस्य सिद्धः, द्रव्यम्य सिद्धः चरणस्य सिद्धौ । बुद्ध्वेति कर्माविरताः परेऽपि, द्रव्याविरुद्धचरणं चरन्तु ।। १. २. पु. सि. ६२ वां पड़ा । पु. सि, ६५ मां पद्य । प्रवचनसार गा. २०० को टोका का रश नं. १२. प्रवचनसार टीका पद्म १३ उक्त दोनों पधों का अर्थ इस प्रकार है - चरण द्रव्यानुसार होता है, द्रव्य चरणानुसार होता है, इस प्रकार ये दोनों परस्पर सापेक्ष हैं इसलिए या तो द्रव्य का प्राश्नय सेकर अथवा तो चरण का आश्रय लेकर मुमुक्षु मोक्षमार्ग में आरोहण करो ।।१२।। द्रव्य को सिद्धि में चरण की सिद्धि है और चरण की सिद्धि में द्रव्य की सिद्धि है, यह जानकर को रो अविरत दूसरे भी, द्रव्य से अविरुद्ध चरण (चारिन का आचरण करो ।।१३।।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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