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________________ | आचार्य श्रमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व साहित्यालोचकों की दृष्टि में सालंकृत काव्य चाहे वह गद्य रूप हो या पद्य रूप, सहृदय पाठकों को मनोरम, सरल तथा विशेष प्रानंददायक होता है | साहित्य विदों में कुछ तो अलंकार से ही काव्य को सहज ग्राह्य मानते हैं' क्योंकि अलंकार काव्य का सोन्दर्य है तथा सौंन्दर्य ही आकर्षण का कारण है। अधिकांश कवियों के प्रयोग में सतर्कता तथा प्रयास की श्रावश्यकता पड़ती है किन्तु सिद्धहस्त - प्रतिभासम्पन्न कवियों के काव्य में अलंकारों का प्रस्फुटन सहज एवं स्वयमेव हो जाता है। अलंकारों का यथावसर यथोचित प्रयोग ही कवि की काव्यकुशलता का परिचायक है | अलंकारों के वैज्ञानिक वर्गीकरण तथा स्पष्टीकरण में भी काव्यकला की प्रवीणता ज्ञात होती है । कवि की मनस्थिति तथा अनुभूतियों का मापन भी अलंकारों के द्वारा किया जा सकता है अतः अलंकारों के प्रयोग से काव्य में चारुता, सुन्दरता, ग्राकर्षण तथा रसानुभूति आदि गुणों का उत्कर्ष देखा जाता है। अलंकारों का काव्योत्कर्ष तथा कवि प्रतिभा की अभिव्यक्ति में महत्वपूर्ण योगदान होता है। Э ४०६ | उपरोक्त अलंकारविषयक कसौटी पर आचार्य प्रमृतचन्द्र काव्यक्तित्व प्रतिभा सम्पन्न - सिद्धहस्तकवि के रूप में उभर कर सामते श्राता है । उनकी कृतियां सालंकृत होने से मनोहर, सरस एवं रसप्लावित है। अपने अलौकिक यानंद तथा अध्यात्मरस के अतिरेक द्वारा उनकी कृतियां अध्यात्मरसिक मुमुक्षुमों को सौन्दर्याधायक एवं आकर्षक बनी हुई हैं । अलंकारों के समुचित प्रयोग से अमृतचन्द्र की गद्य तथा पद्य कृतियों में आत्मानुभूति विषयक रस का श्रास्वादन कराने की अपूर्व क्षमता विद्यमान है । उनकी कृतियों में प्रयुक्त अलंकार सहज एवं अनुभूतिपरक हैं । अनुप्रास तथा उपमा यदि प्रलंकार ग्राभूषणों की भांति शब्द तथा अर्थ दोनों के सौन्दर्यवर्धक माने गये हैं । प्राचार्य अमृतचन्द्र की कृतियों में प्रयुक्त अनुप्रास तथा उपमा की छटा अनुपम है। चाहे गद्यरचना हो या पच, अनुप्रास और उपमा के समुचित प्रयोग में अमृतचन्द्र सिद्धहस्त हैं । उनके द्वारा प्रयुक्त अनुप्रास उपमादि प्रलंकारों का सौन्दर्य प्रस्तुत है. — ९. २. म. काव्यं ग्राह्यमलवङारात् । सौन्दर्य मलङकारः ( अलंकार सूत्र - वामन ) सूत्र ६/१/२ । अलंकार मीमांसा - डा. राजवंश सहाय पृ. ६९ । ४. काव्यप्रकाश अष्टम उल्लास ६७ ।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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