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________________ कृतियाँ । । ४०५ वृत्यंशे समयपदार्थस्योत्पाद व्यय ध्रौव्यत्त्वं सिद्धम् ।" अागे बड़ी दृढ़ता के साथ वे लिखते हैं कि काल की सामान्य विशेष अस्तित्व की सिद्धि भी अस्तित्व की सिद्धि बिना किसी प्रकार भो सिद्ध नहीं हो सकती - यथा "अस्ति हि समस्तेष्वनि वृत्यंशेषु समयपदार्थस्योत्पादव्यय प्रौव्यत्वमेकन्मिन् वृत्यंशे तस्य दर्शनात्, उपपत्तिमच्चंतत्, विशेषास्तित्वस्य सामान्याप्तित्वमन्तरेणानुपपत्तेः । अयमेव च समयपदार्थस्य सिद्धयति सद्भावः । यदि विशेषसामान्यास्तित्वे सिद्धतस्तदा तु अस्तित्वमंतरेण न सिद्धयतः कथंचिदापि ।"१ इस प्रकार अमृतचन्द्र की कुतियों की भाषा अनेक लौकिक अलौकिक शैलियों से समृद्ध है। वे कहीं भी अपनी आध्यात्मिक रसिकता तथा ती मां की निह. । उनकी भाषा तथा भाषाशैलियाँ जहाँ एक ओर संस्कृत वाङमय के समृद्धिशाली युग को इंगित करती हैं, वहीं दूसरी ओर जैन अध्यात्म एवं दर्शन की श्रेष्ठता तथा साहित्यक वैभव को भी प्रगट करती हैं। अमृतचन्द्र ने उपरोक्त शैलियों के अतिरिक्त नाट्यौली तथा चम्पूकाव्य शैली में भी निरूपण किया है । उनकी भाषा तथा शैली विषयक प्रांजलता, प्रौढ़ता, पाण्डित्य प्रखरता, तथा भाषा प्रभुता निश्चित ही अद्वितीय, अनुपम एवं असाधारण है। उनकी भाषा और शैली का सूमेल अध्यात्म की गंगा तथा दार्शनिक भावों की यमुना की भांति है एवं जिज्ञासुग्रों को अवगाहनार्थ प्राकर्षित करती है । प्रलंकार : अब, प्राचार्य अमृतचन्द्र की भाषा तथा शैली के प्राकलन के पश्चात् अलंकार छंद, रस, गुण आदि साहित्यिक विधानों का भी मूल्यांकन किया जाता है । यद्यपि उनके व्यक्तित्व तथा भाषा - शैली आदि पर प्रकाश डालते समय यत्र तत्र उद्धरणों में अलंकार आदि उक्त सभी काव्यात्मक विशेषताओं के भी दर्शन होते हैं, तथापि यहाँ उनको विशेषरूपेण दिखाते हैं। १. प्रवरनसार, गा. १४३ की टीका का अर्थ - "कालपदार्थ के सभी वृत्यशों में उत्पाद-व्यय घोव्य होते हैं क्योंकि एक अत्यंश के देखे जाते हैं। और यह उचित ही है क्योंकि विशेष अस्तित्व सामान्य अस्तित्व के बिना नहीं हो सपना । यही कान पदार्थ के सदभाव की सिद्धि है, क्योंकि। यदि विशेष अस्तित्व और सामान्य अस्तित्व सिद्ध होते हैं तो वे अस्तित्व के बिना किसी भी प्रकार से सिद्ध नहीं होते।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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