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। प्राचार्य अमृत चन्द्र : व्यक्तित्व एवं कस्व अन्यत्र भी कालद्रव्य के उर्वप्रचय को निरन्वय (एक प्रवाह रूप न रहने वाला) मानने का खण्डन करते हुए दार्शनिक गंभीर शैली में ये लिखते हैं। -
"समयो हि समयपदार्थस्य वृत्यंशः । तस्मिन् कस्याप्यवश्यमुत्पादप्रध्वंसी संभवतः, परमार्गोव्यतिपातोत्पद्यमानत्वेन कारण पूर्वत्वात् । तौ यदि वृत्यंशस्यैव,कि योगपद्य न, कि क्रमेण ? योगपोन चेत् नास्ति योगपद्य, सममेकग्य विरुद्धधर्मयोरनवतारात्। क्रमेण लेत् नास्ति क्रमः वृत्यंशस्य सूक्ष्मत्वेन विभागाभावात् । ततो वृत्तिमानकोडप्ययवश्यमनुसतव्यः । स च समय पदार्थ एव। तम्य' खलु - कस्मिन्दपि वृत्यंशे समुत्पादप्रध्वं सौ संभवत: । यो हि वस्य वृत्तिमतो यस्मिन् वृत्यंश तवृत्यंशविशिष्टत्वेनोत्पादः, स एव तस्यैव वृत्तिमतस्तिस्मिन्नेव वृत्यशे पूर्ववृत्यंश विशिष्टत्वेन प्रध्यंस | यद्यघमूत्पादब्ययावेकस्मिन्नपि वृत्वंश संभवतः समयपदार्थस्य कथं नाम निरन्वयत्वं, यतः पूर्वोत्तरवृत्यंश विशिष्टत्वाम्यां युगपदुपातप्रध्वंसोत्पा - स्यापि स्वभावेनाप्रध्वस्तानुत्पन्नत्वादवस्थितप्वमेव न भवेत् । एवमेकस्मिन्,
१. प्रवचनसार गा. १४२ (जेयतत्त्वप्रज्ञापन) - अर्थ - "समय कालपदार्थ वा
वृत्यंश है उस वृत्तंश (मुक्ष्मातिसूक्ष्म पर्याय) में किसी के भी अवश्य उत्पाद तथा विनाश सम्भाविन हैं, क्योंकि परमाणु के अतिक्रमण के द्वारा (समय रूप वृत्यंग) पैदा होता है । अतः वह कारण पूर्वक है । यदि उत्पत्ति और विनामा मृत्यंश के ही माने जायें तो, (प्रश्न होता है कि वे युगपत् है या क्रमशः ? यदि युगपत् कहा जाय तो युगपतपना घटित नहीं होता, क्योंकि एक ही समय में एक के दो विरोधी धर्म (पर्यान) नहीं होते । यदि कहा जाय कि क्रमशः है, तो ऋम भी घटित नहीं होता कोंकि वृत्यंश के मुक्ष्म होने से उसमें विभाग का अभाव है, इसलिए कोई तृतिमान, अवश्य देना चाहिए । और वह (वृत्तिमा) कालपदार्थ ही है। उसको वास्तव में एक वृस्पेश में भी उत्पाद-विनाश सम्मन है, क्योंकि जिस वृत्तिमान. के जिस वृत्ति ग्रंश में जिस वृत्या की अपेक्षा मे जो उत्पाद है वो उसी वृत्तिमान के उसी दृन्यंश में पूर्ववृत्यंश की अपेक्षा से विनाश है । यदि इस प्रकार जमाद और विनाश एक वृत्यंश में भी सम्भषित है. तो कालपदार्थ निरन्वयन कैसे हो सकता है कि जिससे पूर्व और पश्चात वृल्मंग की अपेक्षा से गात् विनाश और उत्पाद को प्राप्त होता हुआ भी स्वभाव से अविनष्ट और अनुत्पन्न होने से वह (कालपदार्थ) अवस्थित न हो ? इस प्रकार एक वृत्यंश में कालपदार्थ उत्पाद व्यय धौष्य वाला है ऐसा सिद्ध हुआ।