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कृतियाँ 1
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परिणामलक्षणेन द्रव्यवृत्तिरूपेणोपयोगेन च निर्वत्तत्वमवतीर्णं प्रतिभाति स जीवः । यत्र पुनरुपयोगसहचारिताया यथोदितलक्षणायाश्चेतनाया प्रभावाद्बहिरन्तश्चाचेतनत्वमवतीर्णे प्रतिभाति सोऽजीव: "" इस प्रकार की तुलनात्मक निरूपण शैली में दो वस्तुओं में भेदपने को सुस्पष्ट करने वाली स्पष्ट भेदक रेखा खचित प्रतीत होती है । अन्यत्र भी ज्ञानभ्य भाव से तथा अज्ञानमय भाव से क्या होता है ? उनके बीच स्पष्ट भेदक रेखा खीचते हुए तुलनात्मक कथन शैली में ही वे लिखते है -
"अज्ञानिनो हि सम्यक्स्वपर विवेकाभावे नात्यंत प्रस्तमितविविक्तात्मख्यातित्वाद्यस्मादज्ञानमय एव भावः स्यात् तस्मिंस्तु सति स्वपरयोरे करवाव्यासेन ज्ञानमात्रात्स्वस्मात्प्रभृष्टः पराभ्यां रागद्वेषाभ्यां सममेकीभूय प्रवर्तिताहंकारः स्वयं किलेवोऽहं रराज्ये रूष्यामीति रज्यते रुष्यति च तस्मादज्ञानमयभावादज्ञानी परी रागद्वेषावात्मानं कुर्वन् करोति कर्माणि । ज्ञानिनस्तु सम्यक्स्वपर विवेकेनात्यंतो दितविविक्तात्मख्यातित्वाद्यस्माद् ज्ञानमय एवं भावः स्यात् तस्मिंस्तु सति स्वपरयोर्नानात्वविज्ञानेन ज्ञानमात्रे स्वस्मिन्सुनिविष्टः पराभ्यां रागद्वेषाभ्यां पृथग्भूततया स्वरसत एव निवृत्ताहंकारः स्वयं किल केवलं जानात्येव न रज्यते, न च रुष्यति, तस्मात् ज्ञानमयभावात् ज्ञानी परी रागद्वे पावात्मानमकुर्वन्न करोति कर्माणि । २
१. प्रवचनसार, गाथा १२७ की टीका - अर्थ - "इस विश्व में द्रव्य, एकत्व के कारणभूत द्रव्यसामान्य को छोड़े बिना ही, उसमें रहे हुए विशेष लक्षणों के सद्भाव के कारण एक दूसरे से पृथक किये जाने पर जीवस्वरूप और अजीव रूप विशेष को प्राप्त होता है । उसमें जीव का आत्मद्रव्य ही एक भेद है और अजीव के पुद्गलद्रव्य, धमंद्रव्य, कालद्रव्य, तथा प्रकाशद्रव्य यह पाँच भेद है। जीव का विशेष लक्षण चेतना-उपयोगमयत्व है और अजीव का अचेतनपता है। वहां (जीव ) स्वयम में व्यापनेवाली होने से स्वरूप से प्रकाशित होती हुई, अविनाशनी भगवती, संवेदन रूप चेतना के द्वारा तथा चेतना परिणामलक्षण द्रव्यपरिणति रूप उपयोग के द्वारा जिसमें निष्पापना अवतरित प्रतिभासित होता है वह जीव है और जिसमें उपयोग के साथ रहने बाली यथोक्त लक्षणवाली चेतना का अभाव होने से बाहर तथा भीतर अचेतनापना अवतरित प्रतिभासित होता है । वह अजीव है ।
२.
समयसार, गाया १२७ को टीका का अर्थ - "अज्ञानी के सम्यक्प्रकार से, स्वपर का विवेक न होने के कारण भिन्न श्रात्मा की ख्याति अत्यन्त श्रस्त हो चुकने