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कृतियाँ ।
[ ३६५ साहित्यिक शैलियों के प्रयोग में वे जितने कुशल हैं उससे भी अधिक आध्यात्मिक शैलियों के अनुसार विवेचन करने में वे निष्णात हैं । उनके वाङमय में प्रयुक्त समस्त भाषाशैलियों तथा निरूपण शैलियों को मुख्यतः दो विभागों में रख सकते हैं । प्रथम विभाग में व समस्त साहित्यिक शैलियां गर्भित हैं जिनका प्रयोग अमृतचन्द्र के पूर्ववर्ती तथा समवर्ती साहित्यकारों द्वारा हया है । इन्हें हम लौकिक शैलियां कहेंगे । दूसरे विभाग में वे समस्त प्राध्यात्मिक दार्शनिक शैलियाँ आती हैं जिनका प्रयोग अध्यात्म एवं दर्शन के क्षेत्र में वस्तुतत्त्व के निरूपण में किया जाता है । इन्हें हम अलौकिक शैलियाँ कहेंगे। अलौकिक शैलियों में कुछ तो अमृतचन्द्र के पूर्ववर्ती जैनाचार्यों के जिनागम में उपलब्ध होती हैं किन्तु कुछ शैलियां ऐसी भी मिलती है जिनका प्रणयन श्राचार्य अमृतचन्द्र ने ही अपनी टीकाकृतियों में किया है । लौकिक शैलियों में व्युत्पत्ति या निरुक्त्यर्थ, सरलार्थ, सुगमव्याख्या, प्रश्नोत्तर, दीर्घसमासपदयुक्त, सालंकृत-क्लिष्ट पद रचना, प्रश्नबहुल, उत्प्रेक्षार्थे "इव"प्रयोग, उपमार्थे "इव"प्रयोग, बहुश: "कदाचित्" पद प्रयोग, विभिन्न क्रिया पद प्रयोग प्रादि शंलियों की चर्चा सप्रमाण तृतीय अध्याय में की जा चुकी है। इनके अतिरिक्त सभासविग्रह, दृष्टांत - दान्ति , तुलनात्मक निरूपण, दृष्टांत, सूत्ररूपेण कथन, अलंकार युक्त कघन, समासबहुल, दीर्घकायवाक्यरचना, लघुकायवाक्य रचना, उपमार्य बत् प्रयोग इत्यादि गद्यशं लियाँ भी प्रयोग की गई हैं । अलौकिक शैलियों में हेतुपुरस्सर कथन बोली, नयरूपकथन, अनुमान-पंचावयब प्रयोग, न्यायशैली ग्रादि के सम्बन्ध में प्रकाश डाला जा चुका है। इसके अतिरिक्त हेतुहेतुमद्भुत शैली, अस्ति नास्ति रूप कथन, प्रत्यभिज्ञान, अनेकांत, तक्रबहुल दार्शनिक निरूपण इत्यादि शैलियाँ भी दृष्टव्य हैं। उपरोक्त लौकिक तथा अलौकिक नैलियों के प्रयोग में आचार्य अमृतचन्द्र की भाषा विशेषरूपेण गौरवान्वित तथा सौन्दर्यान्वित हो उठी है । इन शैलियों में कुछ के उदाहरण प्रस्तुत किये जाते हैं। समास विग्रह शाली:
एक स्थल पर " महान्" पद के समासविग्रह करके तीन प्रकार से अर्थ निष्पन्न करते हए वे लिखते हैं - "अभिः महान्तः अगुमहान्तः" अथवा "अणुभ्यां महान्तः अणुमहान्तः" अथवा "प्रणवश्च महान्तश्च अगुमहान्तः ।' इस तरह समास विग्रह कथन शैली द्वारा तीन प्रकार के १. पंचास्तिकाय, गा, ४ को टीका।