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पूर्वकालीन परिस्थितियां ]
[ ११ वीरशैवों या लिंगायतों का सर्वाधिक, तीव्र विद्वष जैनधर्म और जनों पर था । जब जहां उन्हें शक्ति प्राप्त हुई जैनों पर इन्होंने भीषण अत्याचार किये, जिनमें ये प्राचीन शव नयनारों तथा वैष्णव अलवारों से भी आगे बढ़ गये ।
___ इसी तरह ११वीं सदी ई. में कुमारपाल का भतीजा अजयपाल हा जो शैवधर्म का अनुयायी था । वह बड़ा असहिष्णु था । उसने पुराने मस्त्रियों और सरदारों को अपमानित किया तथा नष्ट किया। जैन, विद्वानों और साधुओं पर भी घोर अत्याचार किये, उनकी हत्या करायी और जैन मन्दिरों को भी नष्ट करवाया।
इस प्रकार तत्कालीन रोमांचकारी, अति भयानक परिस्थितियों से बचने हेतु जनों में भट्टारकों का उदय हुआ ! उन्होंने युगानुरूप बहुसंख्यकों की कई धार्मिक क्रियाओं तथा रूढ़ियों की नकल करना और उन्हें तथैव अपनाना प्रारम्भ कर दिया। उक्त भट्टारक सम्प्रदाय के विकास में शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठों का प्रभाव एवं उनका अनुकरण स्पष्ट दिखाई देता है। उस समय की मांग हो कुछ ऐसी रही । भट्टारक गोठों में भी कई दृष्टियों से वैदिक पद्धतियों का प्रवेश हुमा । पद्यावतो आदि देवियों को काली, दुर्गा या लक्ष्मी का ही रूपान्तर माना जाने लगा। अध्यात्म शास्त्रों के व्यास्यान में आत्मा के समान ही ब्रह्म का निरूपण होने लगा । मन्त्र, तन्त्र, चमत्कार आदि के द्वारा जनता पर अपना प्रभाव जमाये रखना तत्कालीन भद्रारकों का प्रमुख कर्तव्य बन गया था । बे मन्त्र तन्त्रादि द्वारा देवी देवताओं को भी प्रसन्न करते रहते थे । मन्त्र चमत्कार के ही द्वारा भट्टारक अपनी पालका का आकाश में गमन होना, पापाण मुनियों द्वारा अपने पक्ष की पुष्टि होना इत्यादि सिद्ध करते थे। सरस्वती वी पाषाण मुनि के द्वारा दिगम्बर सम्प्रदाय का प्राचीनत्व सिद्ध करना चमत्कारों का ही एक उदाहरण है 1 3 उक्त मन्त्र, तन्त्र, चमत्कारादि क अतिरिक्त भट्टारकों ने तत्कालीन ब्राह्मण संस्कृति के आचार, विचार तथा प्रधाओं का पूर्णनः अथवा अंशतः अतकरण किया। इस सन्दर्भ में विदुषी श्रीमती एस. स्टीवेंशन लिखती हैं कि जन-सम्प्रदाय ने भारत के - - - - - - -. . .. .. - १. भारतीय इतिहास, एक अप्टि' डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन, पप्ठ ३२ २. भट्टारक गम्प्रदाय प्र. पृष्ठ १५ ३. वही, पृष्ठ १५
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