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नाय अमानना : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व "यथाग्निरिन्धनमस्तीधनमग्निरस्त्यग्नेरिधनमस्तींधनल्याग्निरस्ति, अग्नेरिधनपूर्वमासीदिधनस्याग्निः पूर्वमासीत्, अग्नेरिंधने पुनर्भविष्यतींधनस्याग्निः पुनर्भविष्यतीतींधन एवासद्भूताग्नि विकल्पत्वेनाप्रतिबुद्धः कश्चिलक्ष्येत्, तथाहमेतदस्म्येतदहमस्ति ममतदात्येतस्याहम स्मि, मर्मतत्पूर्बमासोदेतस्याहं पूर्वमासं, ममं पत्पुनर्भविष्यलेतस्याहं पुनर्भविष्यामीति परद्रयाएवासद्भुतात्म विकल्पत्वेनाप्रतिबुद्धो लक्ष्वेतात्मा । नाग्निरिधनमस्ति मंधनमग्निरम्यग्निरस्तीधनमिधनमस्ति, नागरिधनं पूर्वमासीन्नेधनस्यागिनः पूर्वमासीदग्नेगरिन नमामीदिभरोभनं पूर्वमासोत, ना!रपन पुनर्भविष्यति नेधनस्याग्निः पुनर्भविष्यत्यग्ने र ग्निः पुनर्भविध्यतींधनत्ये धनं पुनर्भविष्यतीति कस्यचिदानावेव सद्भूताग्निविकल्पबन्नामेतर्दा म. नेतदमस्त्यहम हमसम्बतदेतदस्ति न मतदन्ति नैतस्याहमस्मि ममाहमस्म्येतदस्यतदस्ति, न ममैतत्पूर्वमासीन्नेतस्याहं पूर्वमासं ममाह पूर्वमासमतस्यतत्पुर्वमासीत्, न ममैतत्पुनर्भविष्यति नंतस्याहं पुनर्भविष्यामि ममाह पुनर्भविष्याम्येतस्यैतत्पुनर्भविष्यतीति स्वद्रव्य एवं सद्भूतात्मविक यस्य प्रतिबुद्ध लक्षणस्य भावात् ।' १. समपसार गाथा २०-२१-२२ को टीका:-अर्थ -- जिम प्रकार कोई पुप ईधन
और अग्नि को मिला हुआ, देखकर ऐसा झूठा विकल्प करे कि "जो अग्नि है मो ईधन है और ईधन है, सो अग्नि है । अग्नि का ईश्वन है, ईधा को अग्नि है, अग्नि का ईधन पहले था, ईधन की अग्नि पहले थी, अग्नि का ईधन भविश्य में होगा, ईधन की अग्नि भविष्य में होगी, “एमा विकल्म करने वाला अप्रतिबुद्धि-अजानी प्रकट होता है । इसी प्रकार कोई (पुरुय) आत्मा एवं पर भव्य में असत्यार्थ विकल्प करे fF "मैं यह परद्रव्य हूँ, सह पदव्य मुझग्यरूप है, यह परद्रव्य मेरा है. मैं इस परनब का हूँ, मेग यह पहिले था, मैं इसका पहले था, मेरा यह भविष्य में होगा, मैं इसका भविष्य में होऊंगा' ऐने विकल्पों से अप्रतिवृद्ध अज्ञानी पहिचाना जाता है और अग्नि है. वह ईधन नहीं है, ईधन है यह अग्नि नहीं है, अग्नि है वह अग्नि ही है. ईधन है वह ईधन ही है. अग्नि का ईधन नहीं, ईधन की अग्नि नहीं, अग्नि की अग्नि है, ईधन का ईधन है, अग्नि का ईधन पहले नहीं था, ईधन की अग्नि पहले नहीं थी, अग्नि की अग्नि पहले थी और ईधन का ईधन पहले था, अग्नि का ईधन भविष्य में नहीं होगी, अग्नि की अग्नि ही भविष्य में होगी, ईधन का ई धन ही भविष्य में होगा। इस प्रकार किसी को सत्यार्थ अग्नि का विकला है, वह प्रतिबुद्ध-ज्ञानी का लक्षण है । इसी प्रकार "मैं यह परद्रव्य नहीं हूँ, यह परतबग मुझस्त्ररूप नहीं है. मैं तो मैं ही हैं, परवा तो परद्रव्य ही है. मेरा