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कृतियाँ
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पदलालित्य एवं भाषाप्रौढ़ता का उदारहण :
यात्म ख्याति टीका प्रारम्भ करने की प्रतिज्ञा एवं सिद्धों को नमस्कार करते हुए, उनके व. अचल एवं अनुपम स्वरूप का हेतुपुरस्सर स्पष्टीकरण करते हुए, वे लिखते हैं – “अथ प्रथमत एव स्वभावभावभूतनया ध्र बत्नमवलंबमानानाविभावान्तर चारवृत्ति विधान्ति बोनाचलत्वमु. गतामखिलापमानवादभुतमाहापरवनाविद्यमानापयामपवर्ग संज्ञिका गतिमापन्नान् भगवतः सर्वसिद्धान् सिद्धल्नेन साध्यस्थात्मनः प्रलिछदस्थानीयान् भावद्रव्यरतवाभ्याम् स्वात्मनि परात्मनि च निधायानादि निधनच त ।काशितत्वेन निविलार्थसाथसाक्षात्कारिकेलिप्रणीतनेन भूतकेवलिभिः स्वयंमनुभवद्भिरभिहितत्वेन च प्रमाणतामुपगतस्य समयप्रकाश क्रम्य प्रामृताव्यस्याहत्प्रवचनावयवस्य स्वापरयोरनादि मोह प्राणाय भावधाचा द्रध्यबाचा च परिभाषणमुपक्रम्यते ।
इमी तरह टीकाकार अमृतचन्द्र सिद्धान्त' को सुबोध, सरल तथा वालबुद्धिगम्य बनाने हेतु दृष्टांत एवं दाति दोनों में समान पद तथा वाक्यों का प्रयोग करते है । वे पुनरूक्ति दोष को चिन्ता किए बिना समान भाषाप्रयोग को तब तक जारी रखते हैं, जब तक दृष्टान्त के समान ही सिद्धान्त स्पष्ट नहीं हो जाता है । वे एक स्थल पर प्रतिबुद्ध-ग्रज्ञानो तथा प्रतिबुद्ध-ज्ञानी की पहिचान कराते हुए लिखते हैं ..
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१. समयसार गा, पं. १ टीका का अर्थ – अथ'' पद मंगल अर्थ को मुचित करता है। प्रथम' ही स्त्रभान' भाव से उत्पन्न होने के कारण (नई सिद्धानि-पंचम गति! धवस्व का अवलम्बन करती है। वह गनि अनादिकाल से परभावों के निपिन से होने वाले परिभ्रमण के अभाव के कारण अब नाना को प्राप्त है नया गत में जो समस्त' उपमा योग्य पदार्थ हैं, उनमे विलक्षण-अभुत महिमावाली है, अतः अनुपमता को प्राप्त है। उसे अपवर्ग नाम से जाना जाता है, ऐसी गति का मानहाप समस्त सिद्ध भगवन्नों को अपने तथा पर के आत्मा में स्थापित करने हैं. क्योंकि वे सिद्ध भगवान सिद्धत्य मे साध्य आत्मा के प्रति छन्द के समान पर है. अन: भाव तथा द्रब्य रूप से स्यापित करके समय मा प्रमाणा 'सर्व पदार्थों या जीवपदार्थ का प्रकाशना). अहन के प्रवचन का अवानरूप प्राभृत नाम से व्यवहित ग्रन्थ वा, अनादिकाल में उत्पन्न हुए अपने तथा ५. के मोह को नाश करने के लिए. परिभाषण बारता हूँ। वह अर्हत्प्रया का असर अगादिनिधन परमागमरूप शब्दमा से प्रकाशित होने से, केलियों के निपटननी साक्षात् सुनने वाले ती स्वयं अनुभव करनेवाले शुभके बली -- गणधरदेवों के द्वारा मानित होने गे. रामापवास को सात् नेवाल नली द्वारा प्राणीत होने से प्रमाणता को प्राप्त है।