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। प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व षट्पाहड़ टीका :
'षट्पाहुई" नामक प्राकृत भाषा में गाथाबद्ध रूप में लिखित एक रचना है, जो प्राचार्य कृन्दकुन्द स्वामी की कृति है । उस पर श्रुतसागरसूरि की १६वीं सदी में लिखी गई संस्कृत टीका तथा पं. जयचन्दजी कृत हिन्दी (ढहारी में भाषा बचानका उपलब्ध होती है। प्रोफेसर विन्टरनिजी ने रक्त ग्रन्थ का परिचय कराते हा फटमोट में श्रतसागर सरि के साथ अमृतचन्द्रसूरि को भी षट्पाहुड का संस्कृत टीकाकार लिखा है, जिसका अाधार उन्होंने पीटर्सन रिपोर्ट जिन्द २ पृ. ८० तथा १५० बताया है । प्रो. विन्टरनिटज के उल्लेख के अनुसार डॉ. मोहनलाल एवं प्रो. हीरालाल र. कापडिया ने भी अमृतचन्द्र द्वारा पदपाहन पर टीका लिने जाने की सम्भावना का उल्लेख किया है. परन्तु उक्त सम्भावनाएँ निराधार हैं । आचार्य अमृतचन्द्र कृत कृतियों में आज तक ऐसी कोई रचना प्रकाश में नहीं आई है, और न ही जनदर्शन के विख्यात प्राचार्यों तथा विद्वानों ने इसका कहीं पर जुग्लेख ही किया है। डॉ. ए. एन. उपाने ने भी इस प्रकार की कृति के सम्बन्ध में अपनी अनभिज्ञता ही प्रगट की है। अतः उक्त सम्बन्ध में जब तक कोई ठोस प्रमाण या तथोक्त टीका उपलब्ध नहीं होती तब उक्त टीका को अमृतचन्द्र के साथ प्रसिद्ध करना निराधार तथा अनुचित है। श्रावकाचार (प्राकृत) :
ऐसी एक विद्वान की मान्यता है कि अमतचन्द्र ने कोई श्रावकाचार नामक प्राकृत में ग्रन्थ लिखा होगा, कारण कि वे प्राकृत गाथानों के टीकाकार थे। दूसरे समयसार को टीका में एक प्राकल गाथा भी उद्धृत है। मेघविजय ने उक्त गाथा को अमृतचन्द्र कृत माना है। तीसरे एक गाथा "ढाढसी गाथा" में भी अवतरित है. जो अमृतचन्द्रकत होनी चाहिए । इस प्रकार के सभी तर्क दिये हैं, परन्भू श्रावकाचार जैसी कोई कति आज तक उपलब्ध नहीं हुई, जिसे अमृतचन्द्र कृत माना जा सकें। दूसरे श्रावकाचार विषयक ग्रन्थ की रचना संस्कृत पद्यों में “पुरुषार्थसिद्धयुपाय" नाम से करने के बाद पुनः प्राकृत में रचना करना कोई प्रयोजनभूत बात नहीं ? History of Indian Literatura, V.:] – J!. Page 57? (Footnote) २. जैन साहित्य का वृहतिहास - भाग ४ पृ. १५६ । ३. ravicharrasara - Preface Page 36 (Footnote Edited by ____AN Timadhye, l-dn. II, 145 ४. Pravacanarara Preliace Page 95 Edited by A. N. Upadhye,