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कृतियाँ । पाठानसंधान :
"लघुत्वस्फोट'' की उपलब्ध एकमात्र ताडपत्रीय प्रति में बहुत कम शाब्दिक एवं लिपि विषयक त्रुटियां थीं, जिन्हें प्रथम अंग्रेजी संस्करण के सम्पादक डॉ. पदमनाम जैनी (प्रोफेसर विश्वविद्यालय, केलोफोनिया, यू. एस. ए) ने संशोधित कर दिया है। पश्चात् डॉ. पं. पन्नालाल साहित्याचार्य ने इसका द्वितीय बार हिन्दी में सम्पादन किया है जो दि. जैन, वर्णी संस्थान वाराणसी में प्रकाशित हुँचा है। अतः उक्त उपलब्ध दोनों ही प्रकाशन पाठानुसंधान की दृष्टि से पूर्णतः शुद्ध हैं। परम्परा :--
अपन अन्य वस्यों की भांति आमतचन्द्र ने इस ग्रन्थ में भी मुख्यतः जिनस्तुति परक चरणानुयोग तथा करेंणानुयोग विषयक अध्यात्मरस का निर्भर प्रवाहित किया है । इस प्रकार इस कृति में जैन-स्तोत्रकाव्य परम्परा का ही निर्वाह हुना है। प्रणाली :
स्तुति काव्यों की निरूपण प्रणाली वर्णनात्मक तथा ताकिक रही है। प्राचार्य अंमतचन्द्र ने भी इसमें उक्त प्रणाली का ही प्रयोग किया है । ग्रंथ में आद्यन्त दार्शनिक, प्राध्यात्मिक तथा नार्किक शैली के पद-गद पर दर्शन होते हैं। प्रन्यवैशिष्ट्य :..
इसमें प्रथम सो दार्शनिक स्पर्धा युग की क्लिष्ट व तात्विक काव्य शैली प्रयुक्त है । दूसरे जैनदर्शन के गुढ़तम रहस्यों का मात्र विद्वज्जनग्राह्य मंथन है। तीसरे अनेकांत ग्याद्राद तथा नयों का विशद् स्पष्टीकरण हुया है। प्रकाशन :--
अब तक उक्त नवोदित कृति के केवल दो ही संस्करण प्रकाशित हुए हैं, जो इसप्रकार हैं१. ल. त. स्फोट, सं. डा. पद्मनाम जैनी यू. पास.ए, प्रकाशक एल.डी.
इंस्टीट्युट अहमदाबाद, सन् १९७८, अंग्रेजी ५०० प्रतियां, प्रथम
संस्करण। २. ल. त. स्फोट. सं. डा. पं. पन्नालाल जैन, सागर म. प्र., प्रकाशक
वर्णी दि. जैन संस्थापक बाराणसी, सन् १९८१. हिन्दी, १००० प्रतियां, प्रथम सं..
अन्य चचित कृतियां आचार्य अमृप्तचन्द्र के नाम पर कुछ अन्य कृतियों की चर्चा पवचित् कदाचित् मिलती है । ऐसी चचित कृतियों में 'षट्पाहु पर संस्कृत टीका, श्रावकाचार (प्राकृत), पंचाध्यायी, ढाढसी गाथा के नाम विचारणीय हैं ।
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