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कृतियाँ |
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नियम है | आपका केवलज्ञान सकल विश्व को व्याप्त करता है। उसकी एक कला मात्र प्राणी को अनुभूति कराती है । श्रात्मा स्व पर प्रकाशक शक्ति बाला है ।
चतुर्दश अध्याय में जिनेन्द्र के प्रत्येक गुण का अलग-अलग तथा एकसाथ निदर्शन कराया है। जिनेन्द्र सामान्यापेक्षा एक चैतन्यमात्र प्रभेद हैं, विशेषापेक्षा दर्शन ज्ञान रूप भेद है । वे एकांतदृष्टियों को ज्ञानगोचर नहीं होते। उनकी प्ररूपणा आत्मा के स्वरूप समझने वालों के लिए है । आप पर्याय से उत्पन्न द्रव्य से अनुप हैं, समुदाय रूप से एक तथा जयव रूप से अनेक हैं | आप नित्य श्रनित्य तथा अनादि अनंत ज्ञान सागर रूप हैं । सामान्य ज्ञानदृष्टि से एक तथा विकल्पदृष्टि से अनेक हैं, परन्तु दोनों ही अवस्थाओं में विभागी प्रतिच्छेदों से समान ही रहते हैं । आप वृद्धिंगत होकर भी वृद्धि को प्राप्त नहीं होते, घटते हुए भी घटते नहीं और न ही घटते हैं, न बढ़ते हैं । वस्तु का स्वभाव परिणाममय है । स्वभाव में तर्क करना निरर्थक है । श्रापका प्रत्यक्ष स्वरूप प्रज्ञानी की प्रतीति से परे हैं । ज्ञानियों की दृष्टि पर पर पड़ी रहती है, जबकि श्राप निजमहिमा में लीन रहते हैं । स्व वगर के भेदज्ञान के लिए विधि-निषेध रूप पद्धति से निर्णय करना चाहिए । दर्शन गुण स्वयं प्रतिभासित होता है, उसे पर पदार्थों से प्रयोजन नहीं है । आप दृश्य पदार्थों से विरक्त तथा परपदार्थों के प्रकाशक हैं | है जिनेन्द्र, दर्शन-ज्ञान की बिजलियाँ मानो चंदोबा रचतीं हैं, समस्त जगत् मानो ग्रापके ज्ञानमुख में ग्रासीभूत होता है । सर्वशदशा होने पर सर्वजगत् आपका प्रतिबिम्ब जैसा लगता है । आत्मा मात्र ज्ञायक है । उसके दर्शन - ज्ञान की क्रिया से संसार बीज नाश होता है । भेदज्ञानी क्रिया में नहीं रमता है । संसार के कारणों के नाश से मुक्ति होती है । प्राप मत्स्यावतार की भांति पुनः जन्म धारण नहीं व रते | आपका समागम ही सुख हैं तथा वियोग ही दुःख है । वे धन्य हैं, जिनमें प्राप स्थित हैं । प्राप सकल परमात्मा हैं। आप में एकदेश संलग्न होने पर भी कषाय मल नहीं
लगता ।
पंचदश अध्याय में पूर्वोक्त विधिनिषेध पद्धति का ही स्पष्टीकरण प्रस्तुत है । आपका आश्चर्यकारी पद केवली के ज्ञानगम्य है । श्रापका रसास्वादी, गन्ने के स्वाद में प्रतृप्त बालक की तरह संतुष्ट नहीं होता । श्रापका ज्ञानास्त्र परपदार्थों पर पड़ते रहने से भोथला नहीं होता । श्रापके दर्शन रूप मस्त्र का पराक्रम लोकालोक में फैल रहा है । द्रव्य पर्याय विना