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| प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कटुत्व हो जाऊँगा। मैं संयमलन्धि गुणस्थान में हूँ तथा पाप तेरहवें सयोग केवली गुणस्थान में हैं, अतः मुझसे आप बहुत दूर हैं। मैं तो आपके स्वरूप का यथार्थ विश्लेषण करने वाला है। विवेक धारा से मेरा मन उत्कृष्टता को प्राप्त हो रहा है । आपने समता रूपी अजूत द्वारा कर्म रूप कालिमा को नष्ट किया है । अापने राग का शोषण किया है, जबकि अन्य देवगण राग में ही लिप्त हो रहे हैं । आपने संयम मार्ग की कुछ शुभक्रियाओं का अवलम्बन कर समस्त पाप-क्रियाओं को नाश किया तथापि शुभक्रिया के भी कर्तृत्व से दूर रहे। आप ज्ञानस्वरूप में मग्न, परम औदारिक शरीर धारी हैं । आपकी समस्त शक्तियाँ आपके स्वभाव को नहीं भेदती । आपका फेवलजान तेज उत्कृष्ट तथा जयवंत है । आप अपने केवलज्ञान में प्रतिबिम्बित विश्व को स्पर्शते हुए भी पर से अभिभूत नहीं होते । ग्याप मात्र ज्ञाता हैं कर्ता नहीं। अापका अनंतशक्ति सम्पन्न केवलज्ञान कभी स्खलित नहीं होता। प्रापका स्वभाव सकाल कारक चक्र की प्रक्रिया से पार है। आपका केवलज्ञाम न तो प्रवर्तन करता है और न ही प्रतिवर्तन करता है, अपितु स्व वर्तन करता है । ग्राप परिपूर्ण होकर भी परिपूर्ण हो रहे हैं। आप तुप्त होकर मी तप्त, बुद्धिगत होकर भी वृद्धिगत हो रहे हैं। प्रायका सम्यग्ज्ञान कभी भी सर्वपदार्थों को जानने की शक्ति को नहीं छोड़ा: महबापका प्रतायत तेजस्वीस्वरूप और कहाँ मेरा अज्ञानान्धकार रूप पर्दा, दोनों की कथा कैसे हो सकती है ? प्राप दसों दिशाओं में प्रकाशित है । अन्त में स्तुतिकार लिखत हैं कि हे जिनेन्द्र पाएको महिमा का गुणगान वास्तव में केवलज्ञान से या विशिष्ट ज्ञानियों से ही सम्भव है ।
अष्टम अध्याय में जिनेन्द्र को सर्वोत्कृष्ट उपदेष्टा - प्राप्त के रूप में मरण किया है । स्तुतिकार कहते हैं कि हे जिनेन्द्र पापका संसारदशा का रागीस्वभाव अब मोक्षमार्ग में शान्त हो चुका है । कषाय का क्षय ही एकमात्र मुक्ति का कारण प्रापने बताया है। आपने एक होने पर भी अनेक कमात्र समूह को जीता है। देव-दानवों आदि सभी ने प्रापके मुख से वस्तुस्वरूप को दिखाने वाला स्याहादस्वरूप सूना तथा जाना है । शुद्ध अभिप्राय वाले ही सापकी नयात्मक वाणी द्वारा अर्थ अवधारण कर सकते हैं । स्थाद्वाद की मुद्रा के विना गब्द शक्ति सर्वांशों के प्रकाशन में स्खलित
समर्थ) हो जाती है । सत का कथन असत' सापेक्ष होता है। यदि ऐसा न होता तो वस्तुस्वभाव अपनी मर्यादा तोड़ देता ? सत्ता द्वारा समस्त विश्व नहीं गिया जा सकता, परन्तु समसा किन्न. द्रारा गत्ता को गिया जा सकता