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________________ [ याचार्य अमृत चन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व कर्तृत्व : इसके रचयिता भी प्रकृत प्राचार्य अमृतचन्द्रसूरि ही हैं । इस सम्बन्ध में निम्न प्राधार उपलब्ध हैं - प्रथम तो मूलपाठ में प्राचार्य अमृतचन्द्र का नाम दो बार प्रयुक्त हुआ है। एक बार प्रथम अध्याय के अंत में तथा एक बार उपसंहारात्मक अंतिम श्लोक में कवीन्द्र पर सहित अमृतचन्द्र का नामोल्लेख हुआ है। दूसरे लधुतत्त्वस्फोट के कुछ पछ समयसार कलश से साम्य रखते हैं। इसके ५०७ तथा ३२४ नं. के पद्य क्रमश: समयसारकलश के २७० और १४१ व पद्य के समान है। तीसरे इन दोनों रचनात्रों में शैली और शब्दावलि दोनों में भी कई प्रकार के साम्य हैं। चौथे प्राचार्य संमतभद्र के रत्नकरण्डश्रावकाचार का प्रभाव जिस तरह पुरुषार्थसिद्धयुपाय पर दिखाई देता है, जी प्रत सामनभावामी रे ही वृहद् स्वयंभूस्तोत्र आदि स्तोत्रों की शैली का तथा तत्त्व निरूपण का प्रभाव अमृतचन्द्र कृत लघुतत्त्वस्फोट में दिखाई देता है। दोनों के प्रारम्भ में स्वयंभू शब्द का प्रयोग चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति, स्याद्वाद व निश्चयपरक विवेचन, सर्वज्ञता की सिद्धि, अनेकांत का विशेष स्पष्टीकरण, अन्यदर्शनों का निराकरण प्रादि साम्य इसके प्रमाण हैं । पाँचवें - जिस प्रकार पुरुषार्थसिद्धयुपाय का अपरनाम "जिनप्रवचनरहस्य कोश" है, उसी प्रकार लघुतत्त्वस्फोट का भी अपरनाम शक्तिमणितकोश है। छठवें ग्रन्थ के अंत में अंतिम दो पद्यों में स्तुति रूप रस के प्रास्वादी अमृतचन्द्र का उल्लेख हुआ है। साथ ही "इत्यमृतचन्द्रसूरिणां कृतिः शक्तिमाणितकोशो नाम लधुतस्वस्फोटः समाप्तः" इन अंतिम शब्दों से उक्त कृति का प्रकृत प्राचार्य अमृतचन्द्र कृत होना भलीभांति प्रमाणित होता है। नामकरण : इस कृति के उपरोक्त उभय नाम समूचित एवं सार्थक प्रतीत होते हैं । “शक्तिमणितकोश" नाम का उल्लेख अंतिम ६२६ वे पद्य में हुआ - - - -- १. लघुतत्त्वतस्फोट - अध्याय १ पछ २५ । है लहो, अध्याय २५ पद्य २६ ।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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