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कृतियाँ ] २. न. - तत्वार्थसार (अध्याय चौथा) टी. - प्रस्ता. हिराचंद नमचंद
प्र. - सोलापुर सन् १६२० भाषा - संस्कृत । ३. न. - तत्त्वार्थसार (प्रथम गुच्छक में) सं. - पन्नालाल चौधरी प्र. -
पन्नालाल चौधरी काशी, सन् १९२५ भाषा -- संस्कृत । ४. न. - तत्त्वार्थसार सं. - पं. पन्नालाल साहित्याचार्य, प्र. वर्णी प्र. मा. वाराणसी, सन् १९७० भाषा - संस्कृत प्रतियाँ - १००० ।
लघुतत्वस्फोट इसका अपरनाम, शक्तिमणित् कोश, भी है, जिसका उल्लेख ग्रंथ के अंत में है। यह प्राचार्य अमृतचन्द्र कृत सवांधिक क्लिष्ट, प्रौढ़, दार्शनिक, स्वतन्त्र एवं मौलिक कृति है | अतः इसका परिचय प्रथम विभाग में कराया जा सकता था, परन्तु इसे तृतीय विभाग में अन्य कुतियों के अंतर्गत रखा गया है, क्योंकि पूर्वोक्त कृतियाँ ही अमृतचन्द्र की रचनाओं के रूप में पाठकों और विद्वज्जनों के बीच विश्रुत एवं मान्य रही हैं । यह एक नवोदित कृति है । अहमदाबाद के डेला भण्डार में मुनि श्री पुण्यविजयजी को इसकी ताडपत्रीय पाण्डुलिपि प्रथमबार १६६५ ई. में उपलब्ध हुई है। इस अज्ञात कृति की प्राप्ति से समस्त अध्यात्म एवं तस्वप्रेमी विद्वानों को अत्यन्त हर्ष हुअा है। अभी इस रचना का एकमात्र अंग्रेजी संस्करण लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर, अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ है । उक्त संस्करण का सफल सम्पादन एवं अनूवाद डा. पद्मनाभ श्रीवर्मा जनी - प्रोफेसर बौद्धदर्शन केलफोर्निया विश्वविद्यालय, वर्कली (यू. एस ए.) द्वारा हुआ है ।
इसमें ६२५. श्लोक हैं। २५-२५ श्लोक वाले २५ अध्याय हैं । समस्त रचना में १३ प्रकार के छंदों का प्रयोग किया है। यह रचना अमृतचन्द्र की जैन तत्वज्ञान एवं सिद्धांत विषयक असाधारण प्रतिभा के चरमोत्कर्ष की द्योतक है । यह स्तुतिपरक रचना है। इसमें सर्वोत्कृष्ट स्तोत्रकाव्य की प्रौढ़ता प्रदर्शित की गई है । इसे हम अमृतचन्द्र के अमृतमयी
आश्चर्यकारी तत्त्वज्ञान का परिपाक कह सकते हैं। अर्थ गाम्भीर्य तथा क्लिष्ट संस्कृत शब्दावली के प्रयोग से भाव प्रवाह की रसानुमिति में कठिनता प्रतीत होती है। प्रथम अध्याय २४ तीर्थंकरों के गुणस्मरण में समर्पित है । शेष अध्यायों में भी जिनेन्द्र स्तुति के नाम पर गहन सिद्धांतों का प्रतिपादन हुआ है। स्तोत्र परम्परा में उक्त वृति का असाधारण व महत्त्वपूर्ण स्थान है।