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________________ कृतियो ] । ३५६ नहीं पा सकी, उसे अमृतचन्द्र ने तत्त्वार्थसार में व्यक्त करके अपनी मौलिकता की छाप भी छोड़ी है। पाठानुसंधान : तत्त्वार्थसार यद्यपि वर्ण्य विषय की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सिद्धांत निरूपक कृति है, तथापि इसका अमृतचन्द्र की अन्य कृतियों की भांति व्यापक प्रचार प्रसार नहीं हुआ । उक्त कृति की अनुसारी टीकाएँ भी कम है। इसकी हस्तलिखित लिपिशा अधिक नहीं है। कार की इसके बहा थोड़े हुए हैं। इसका सर्वप्रथम प्रकाशन १९१६ का है, जो पं. बंशीधर शास्त्री द्वारा सम्पादित तथा कलकत्ता से प्रकाशित है । दूसरे १९२६ के प्रथम गुच्छक के अन्तर्गत काशी से प्रकाशित है तथा तीसरे १६७ , में पं. पन्नालाल साहित्याचार्य द्वारा सम्रादित एवं वर्णी ग्रंथमाला वाराणसी द्वारा प्रकाशित है । इसमें उपलब्ध पाठभेद निम्न नालिका से स्पष्ट होता है - अध्यायपद्य कलकत्ता प्रति काशी प्रति वाराणसी प्रति १६७० १२ तत्त्वार्थसारोयं तत्त्वार्थसारोऽयं तस्वार्थसारोऽयं १३ सुनिश्चितः सुनिश्चितम् सुनिश्चितः १४ सुनिश्चितम् सुनिश्चितः सुनिश्चितम् ११ तन्वा: तत्वार्या तत्वार्थाः १: न्य प्यमानानयादेशात् न्यस्यमानतयादेशात् न्यस्यमान नयादेशात् १:१३ यद्यन यत्लेन यलन ११५ पुनः पुना पुनः १२० बुद्धिमेधादयो -बुद्धिर्मेधादयो बुद्धिर्मेषादयो १२१ ततस्त्वीहा तपस्वीहा ततस्त्वीहा १.२६ अनवस्थितः अनवस्थितिः अनस्थिति १२६ मनःस्वार्थ मन:स्वार्थ मनस्वार्थ १२८ ज्ञानमक्षानपेक्षया ज्ञानमन्यानपेक्षया ज्ञानमन्यानपेक्षया १:३२ सोवधे: सोऽवधिः सोऽवधि: उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि कलकत्ता तथा काशी प्रतियों में त्रुटियाँ अधिक हैं। उनका यथासंभव परिमार्जन वाराणसी प्रति में हुआ है। यद्यपि वाराणसी प्रति में पाठशोधन तो अवश्य हुआ है। परन्तु मुद्रण विषयक त्रुटियाँ इसमें भी अनेक हैं।
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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