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________________ [ आचार्य अभूतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व अपने ग्रन्थ "प्रमाणबातिक' में अनेकांतवादियों को दही और ऊँट के अभेद के प्रसंग का दूषण देकर लिखा कि अनेकांतवादी दही की जगह कंट को क्यों नहीं खाते।' तब प्राचार्य भट्टाकलंक अपने ग्रन्थ न्याय विनिश्चय में इसका सतर्क, सचोट एवं सटीक उत्तर देते हुए लिखते हैं कि सुगत मुग हुए थे और मृग भी सुगत हुआ फिर भी जैसे आप लोग भृग को ही खाते हो सुगत को नहीं, उनकी तो बन्दना ही करते हो । ठीक उसी प्रकार पर्यायभेद से दही और ऊँट के शरीर में भेद है, इसलिए दही के समान ऊँट खाद्य नहीं है। इस तरह एक अोर दार्शनिक स्पर्धा में तर्क, न्याय तथा वृद्धि का विकास हो रहा था, वहीं दूसरी ओर विभिन्न सम्प्रदायों में भ्रष्टाचार, आलस्य, विलासिता, हिंसापूर्ण मद्य, मांस, मधु तथा व्यभिचार आदि द्र तगति से पनप रहे थे। उक्त वातावरण नवमी-दशमी शताब्दी तक अपनी चरम सीमा को छने लगा था। इस संदर्भ में प्रसिद्ध विद्वान स्वर्गीय डा. राजन राण्डेय ने दमों में लिखा है कि भक्तिमार्गी सम्प्रदायों में वैष्णव, शैव और शाक्त प्रधान थे। उक्त मागियों ने गुप्तकालीन जनता में एक नयी प्रेरणा उत्पन्न कर दी थी । परन्तु नवमीं सदी से उसमें बाह्याडम्बर और भ्रष्टाचार आने लगे। वैष्णव सम्प्रदाय में गोपलीला और अन्तरङ्ग समाज, शैव सम्प्रदाय में पाशुपत, कापालिक और अघोरपंथ, शाक्त सम्प्रदाय में आनन्द, भैरवी अथवा भैरवीचक्र, योगियों में सिद्धिमार्ग आदि कई अशोभन, अश्लील और अनैतिक पन्थ उत्पन्न हो गये। इस काल में धर्म का स्वरूप बहत से स्थानों में, विशेषकर बिहार, कश्मीर, उड़ीसा, बंगाल और आसाम में तांत्रिक हो गया था और उसके कई सम्प्रदाय प्रतिमार्ग अथवा वाममार्ग पर चल पड़े थे, जिनमें पञ्च मकारों मदिरा, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मंथन का सेवन धर्म के नाम - . .-- १. सत्याभय रूपत्वे तद्विशेष निराकृतेः 1 वोदितो इधि खादेति, किमुष्ट नाभिधावति ।। ३/१८१ प्रमाणवातिक २. गगनोऽपति मृगो जातः, मृगोऽपि शुगतस्तथा । तयापि युगतो बन्यो, मृगः खाद्यो यथेष्यने ।। तथा वस्तुबलादेव, भेदाभेद व्यवस्थिते । चोदितो दघि खादेति किमुष्ट्र नाभिधावति ।। न्यायविनिश्चय ३७३/७४, सिद्धिविनिश्चय टीका, पूर्वाध प्र० पृष्ठ ६५/६६
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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