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________________ कृतियाँ । | ३५७ चतुर्थ अधकार में पाखवतन्य का वर्णन है जिसका आधार लत्वार्थसूत्र का षष्ठ व सप्तम अधिकार है। कर्मों के प्राग मन का कारण पानव कहलाता है । मन, बचन, काय म्रूप योगों को प्रास्त्रब कहा गया है। वह योग शुभ व अशुभ अथवा पुण्य व पाप रूप दो प्रकार का है । साम्परायिक तथा ईय पिथ ये दो प्रकार का कर्मानव है । सकषाय कर्मबंधन साम्परायिक कर्म है. अकषाय योग के कारण कर्म पाते हैं, परन्तु बंधते नहीं, उसे ईपिथ कर्म कहते हैं । पश्चात् ज्ञानावरणादि कर्मों के प्रास्त्रव के कारणों का सविस्तार कथन किया है । व्रत से पूण्य का और अबत से पाप का ग्रास्रव होता है। हिंसादि पान पापों के एकदेश त्याग का नाम देगवत और परिपूर्ण त्याग का नाम महावत है। पूर्ण त्याग करने वाले साधु, एकदेश न्याग करने वाले श्रावक होते हैं। प्रत्येक वन को सम्पष्टि हेतु पाँच-पाँच' भावनामों का निरूपण किया है । हिसा, मट, चोरी कुशील व परिग्रह के त्याग रूप ५ व्रत तथा दिग्नत, देशवत, अनर्थदण्डवत, सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोग संख्या और अतिथिसंविभाग ये ५ शीलवत मिलाकर श्रावक के कुल १२ व्रत होते हैं। अंत में सन्लेखना पूर्वक मरण का स्वरूप बताकर उनके अतिचारों के निरूपण के साथ अध्याय समाप्त किया है। पंचमाधिकार में बंध तत्त्व का वर्णन है । इसका प्राधार तत्त्वार्थसूत्र का अष्टम अध्याय है । इसमें सर्वप्रथम मिथ्यात्व, असंयम, प्रमाद, कषाय और योग इन पांचों को बन्धका कारण बताया है। उनके स्वरूप व भेदों का वाचन किया है। जीव कर्मोदय में कषाय युक्त होकर योग के निमित्त से योग्य पृद्गगलों का ग्रहण करता है, वह बंध है । बंध के प्रकृति, स्थिति, अनुभाग तथा प्रदेश ये चार भेद किये हैं। इन चारों के निरूपण के साथ जानावरणादि कर्मों को ८ मुल तथा १९८ उत्तर प्रकृतियों का सविस्तार वर्णन किया है। उनकी कालमर्यादा प्रादि का विशद स्पष्टीकरण किया है । ___पष्ठमाधिकार में संबरतन्त्र का प्रतिपादन है। इसका प्राधार दन्वार्थगुष का नबमा अधिकार है । इसमें गुप्ति, समिति. धर्म परिषहजय, नप अनुप्रेक्षा और चारित्र इन कारणों को आस्रव निरोध अर्थात् संवर का वारण लिखा है। इन कारणों की क्रमशः व्याख्या करते हुए अध्याय समाप्त किया है। सप्तमाधिकार में निर्जरा तत्त्व का कथन किया है । इसका प्राधार तन्वार्थ मूत्र का नवमाध्याय है। पूर्वोपार्जित कर्मों का ग्रान्मा से अलग
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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