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________________ ३५४ । | प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व से अछूती नहीं है । जहाँ अकलंक देव में सर्वार्थसिद्धि के अनुसार सात तत्व का विवेचन किया है, वहाँ अमृतचन्द्र ने आध्यात्मिक शैली में ''हेय. ज्ञेय उपादेय" के साथ तत्वों का परिचय कराया है। निश्चय व्यवहार का संतुलित कथन भी किया है। षट्कारकों को एक आत्मा में ही सुघटित करना उनकी अध्यात्म शैली के परिचायक है। यथार्थ में तत्वार्थसूत्र तथा उसके वार्तिकों में तत्त्वज्ञान का अगाध रत्नाकर समाया हुआ है, उस रत्नाकर के ही मथितार्थ को एवं तत्त्व विषयक रत्मों को संग्रहीत करके तत्वार्थसार नामक ग्रन्थ की रचना की है, अतः उक्त रचना भी एक असाधारण कृति है । जहाँ समयसार का विवेचन सिद्धान्त की आत्मा का विधेचन है, वहीं तत्वार्थसूत्र का विवेचन उसके कलेवर का विवेचन है। इन दोनों "आत्मा तथा कलेवर" को सांगोपांग प्रगट करने में प्राचार्य अमृतचन्द्र ने अन्नपम सफलता पाई है। उन्होंने एक मोर मध्यात्म गंगा बहाई तथा उसमें स्वयं को निमग्न किया है, तो दूसरी ओर तत्वार्थसार की रचना करके तत्वज्ञान के समुद्र में भी गोते लगाये हैं, इसीलिए उक्त कृति की विशेषता स्वयं ही बढ़ जाती है । इस ग्रंथ की महिमा ग्रंथकार के ही शब्दों में इस प्रकार है - जो पुरुष मध्यस्थ होकर इस तत्त्वार्थसार को जानकर निश्चल चित्त होता हुआ, मोक्षमार्ग का आश्रय लेता है, यह निर्मोही होकर संसार के बंधन को दूरकर चैतन्यस्वरूप अविनाशी मोक्षतत्व को प्राप्त करता है । नामकरण : तत्त्वार्थसार" नाम का ग्रंथकार ने अपने ग्रंथ में अनेक बार स्पष्टतः उल्लेख किया है । इसका अन्य कोई नाम आज तक प्रकट नहीं हुआ, अतः उक्त नाम यथार्थ प्रचलित नाम है । जहाँ तक नामकरण के औचित्य का प्रश्न है, उसका बहुत कुछ स्पष्टीकरण ऊपर पा चुका है । संक्षेप में तत्त्वार्थसुत्र के भावों का सार दर्शाने वाला होने के कारण तथा तत्वार्थसुत्र के ही सूत्रों को मुख्यतः पल्लवित, पुष्पित एवं विकसित करने वाला होने से भी इसका नाम तत्त्वार्थ सार सार्थक है। इसमें निरूपण भी सात तत्त्वों के अर्थों का हुआ है तथा पद्यात्मक निरूपण होने से संक्षिप्त अर्थात् सार रूप [१.) तत्वार्थसारमिति यः समधीविदित्या, निर्वाणमार्गमधितिलति निष्पकम्पः । संसारबंधमधूप स धूतमोहाचैतन्यरूपमचर्न शिवतत्वमेति ! २२॥ तत्त्वार्थसार (उपसंहार)
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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