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कृतियाँ ।
तत्वार्थसार पञ्च टीकानों में आचार्य अमृतचन्द्र कृत "तत्वार्थसार" नामक कृति है । जिस प्रकार समयसार कलश अध्यात्म विषयक पद्य टीका है, उसी प्रकार तत्वार्थसार भी तत्त्वार्थ विषयक पद्य टीका है । इस कृति को कुछ विद्वान मौलिक तथा स्वतन्त्र कृति' मानते हैं। इसमें संदेह नहीं है कि परम आध्यात्मिक तथा गम्भीर दार्शनिक अमृतचन्द्र के व्यक्तित्व से अनुप्राणित यह कृति मौलिक तथा स्वतन्त्र जैसी ही प्रतीत होती है । इसमें उनकी कुछ मौलिक विशेषताएँ भी निहित हैं । इसलिए कुछ विद्वानों ने इसे स्वतन्त्र कृति पाना है. परन्तर ताने बरे पगटीका के पानगत समाहित किया है, जिसके कुछ कारण इस प्रकार हैं:
प्रथम तो तस्वार्थसार पुरुषार्थसिद्ध युपाय की भांति स्वतन्त्र रचना नहीं है, अपितु प्राचार्य उमास्वामी के तत्त्वार्थसूत्र के आधार पर ही पल्लविन तथा विकसित रचना है । जैसे तत्त्वार्थसूत्र की अन्य गद्य टोकायों के नाम तत्त्वार्थ राजवातिक तथा तत्वार्थ लोकवार्तिक एवं तत्त्वार्थ वृनि हैं. उसी तरह इस पद्य टीका का नाम तत्वार्थसार है। दुसरे, इसमें तत्त्वार्थसूत्र के सूत्रों को ही सविस्तार स्पष्ट किया गया है। कहीं-कहीं तो मलसूत्र के गद्य को पद्य रूप प्रदान कर दिया गया है। तीसरे, अन्य गद्य टीकानों सर्वार्थसिद्धि, तत्वार्थ राजवातिक आदि के गद्यांशों का भी प्रयोग पद्यरूप में किया गया है। चौथे, टीकाकार ने भी मंगलाचरण रूप पद्य में यह स्पष्ट लिखा है कि तत्वार्थसार नामक यह कृति मोक्षमार्ग को प्रकासित करने वाले दीपक के समान है। इसमें मुमुक्षुत्रों के हित के लिए तत्त्वार्थ का ही सार अत्यन्त स्पष्ट रूप से कहा गया है । इस प्रकार तत्वार्थसूत्र गत भावों का हो प्रमुख रूप से प्रतिपादक तथा सुविस्तारक होने से इसे स्वतन्त्र मौलिक रचनाओं के अन्तर्गत न गिनाकर, पद्य टीकात्रों के अन्तर्गत गिनाया है। तत्त्वार्थसार यद्यपि तत्वार्थसत्र तथा अन्य भाष्यों से अनुप्राणित है, तथापि उसके कुछ मौलिक वैशिष्ट्य भी हैं, जो ग्रन्थ की मांशिक मौलिकता की प्रतीति कराते हैं। यह कृति भी प्रकृत प्राचार्य की आध्यात्मिकता की छाप
१. तत्वार्थसार परतावनर, '. १६, प. पन्नालाल साहित्यामा ।
वही, प्र. पृ. २७ । (३.) अथ तत्वार्थसारोऽयं मोक्षमार्गक दीपकः ।
मुमुक्षरणः हितार्थाय प्रस्पमित्यभिधीयते ॥२॥ तत्वार्थसार, पद्य क्र. ३ ।