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________________ ६ ] हार [ आचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व दिगम्बराचार्यों में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। धर्म, न्याय, व्याकरण, साहित्य, ज्योतिष, प्रायवेद, मंत्र तथा तन्त्र आदि सभी विद्याओं में निपुण होने के साथ ही साथ वे वादकला में अत्यंत पटु थे । काशीनरेश के सामने स्वमीसमन्तभद्र ने स्वमुख से जो अपना परिचय दिया था, वह मात्र गर्वोक्ति नहीं, किंतु तथोक्ति थी । परिचय देते हुए वे कहते हैं - "मैं आचार्य हूँ', कवि हूँ, शास्त्रार्थी हूँ', पंडित हूँ, ज्योतिषी हूँ, वैध हूँ, मांत्रिक हूँ, तांत्रिक हूँ, इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर मुझे बचनसिद्धि है, अधिक क्या कहूँ मैं सिद्धसारस्वत हूँ।' इसी प्रकार एक बार काशीनरेश के क्रोधित होकर पूछने पर समन्तभद्र निर्भीक घोषणा करते हुए कहते हैं कि राजन् आपके सामने यह दिगम्बर जैन वादी खड़ा है, जिसकी शक्ति हो मुझसे शास्त्रार्थ कर ले ।२ समन्तभद्र ने भस्मकब्याधि रोग के उपनामन के पश्चात् फिर से निन्ध दीक्षा धारण कर लो । निर्ग्रन्थ दीक्षा धारण कर आपने पूर्वपश्चिम, उत्तर-दक्षिण सर्वत्र विहार कर जिनधर्म को महिमा स्थापित की। करहाटक नगर में पहुंचने पर वहां के राजा द्वारा पूछे जाने पर अापने अपना पिछला परिचय देते हुए कहा-राजन् पहले मैंने पाटलिपुत्र नगर में शास्त्रार्थ के लिए भेरी बजाई, फिर मालवा, सिन्ध, उक्क, कांचो, विदिशा आदि स्थानों में जाकर भेरो ताड़ित की। अब बड़े-बड़े दिमाज विद्वानों से परिपूर्ण इस करहाटक नगर में आया हूं। मैं तो शास्त्रार्थ की इच्छा रखता हुप्रा सिंह के समान घूमता फिरता हू।। धर्मप्रचार तया पाण्डित्य प्रदर्शन की स्पर्धा के काल में श्रमणेतरमतों के घुरन्धर प्राचार्य तथा विद्वान् इस होड़ में संलग्न रहते थे । इन धुरन्धर आचार्यों में न्यायदर्शन धुरीण, न्यायसूत्र के प्रणेता आचार्य १. प्राचार्योऽहं कविरहमहंवादिरद पण्डितोऽहं दैवज्ञोऽभिषगमहं मांत्रिकस्तांत्रिकोऽहम् । राजन्नस्यां जलाधवलयामेस्सनायामिलाया माजामिद्धः किमिति बहुना सिद्धमारस्वतोऽहम् ।। स्वयंभूरतोत्र प्रस्तावना,पृष्ठ १० २. "राजन् यस्यास्ति शकिः स वदतु पुरतः जननिग्रन्थवादी ।" वहीं, पृष्ठ १२ ३. वही, पृष्ठ १२
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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