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| प्राचार्य अमृतचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व । नामकरण की सार्थकता पर विचार किया जाता है । प्रथम तो जिसप्रकार मंदिर की शोभा कलशों से विशेहोती है, उसकार समयसाररूप मंदिर की शोभा अमृतचन्द्राचार्य कृत पद्यों से विशेष है, अतः उक्त पदों की कलश संज्ञा सार्थक है। दूसरे जिसप्रकार कलशों (घड़ों) में जल आदि भरकर रखा जाता है तथा उनके जल से पिपासुजनों की प्यास मिटती है । उसीप्रकार टीकाकारकृत पद्यों में समयसार की गाथाओं का तथ्यामृत भरा है, जिससे संसारताप से संतप्त, अतीन्द्रिय अध्यात्म रस के प्यासे भव्यजीवों को उनत पद्यों में परमानन्दरूप अमृतरस की प्राप्ति होती है; और वे प्रात्मीय आनन्द और निराकूल शांति का अनुभव करते हैं, अत: उक्तपद्यों की कलश संज्ञा उचित प्रतीत होती है। तीसरे - पाण्डे राजमल्ल द्वारा लिखित टीका का नाम भी "समयसारकलश बालबोध टीका'' है । यह टीका 'कलश" पद का उल्लेख करनेवाली टीकात्रों में सर्वाधिक प्राचीन है। पश्चात पं० बनारसीदास ने भी उक्त कृति को 'समयसारकलश' नाम से एल्लित्रित किया है।' इसप्रकार प्रवृत नाम "समयसारकलश' उक्त रचना का सार्थक एवं चिरप्रचलित नाम है । कर्तृत्व :
"समयसारकलश" टीका के कर्ता प्राचार्य अमृतचन्द्रही है। इसमें विप्रतिपत्ति के लिए जरा भी सम्भावना नहीं है, क्योंकि प्रथम नो बे पद्य आत्मन्याति टीका में बीच-बीच में टीकांश के सार को पुनः प्रदर्शित करते हैं । दुसरे उक्त पद्यों में प्राचार्य अमृतचन्द्र का नाम दो बार प्रयुक्त हुमा है । यथा "उदित अमृतचन्द्रज्योतिरेतत्समन्तात् । तथा 'स्वरूप गुप्तभ्य न किचिदस्ति कर्तव्यमेवामृतचंद्रसूरेः' इन दोनों पद्यों में प्रमुत्रन्द्र का नाम याया है, अतः उक्त टीका के कर्ता प्रकृत प्राचार्य ही है, यह समस्त लेखकों, विद्वानों. राउकों आदि द्वारा एकमतेन सर्वमान्य तथ्य है । अस्तु । प्रामाणिकता :
समयसारकलश की प्रामाणिकता सर्वोच्च तथा सर्वमान्य है । यह बात हम प्रात्मख्याति टीका की प्रामाणिकता के सम्बन्ध में प्रकाश डालते
१. समवसारकानश'' अति नीका, राजमल्लि सुगम यह टीका ||२||
(समयसार नाटक-ईडर को प्रशि का अंतिम अंश) । २. समयसारकलश क्र. २७६ । ३. वही, कलश क, २७८ ।