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________________ ऋतियो । ऐसा प्रशस्त राग स्थूललक्षवाले अज्ञानियों में होता है तथा उच्चभूमिका में अवस्थित न हो पाने से तथा प्रस्थान का राग रोकने के लिए अथवा तीनरागज्वर मिटाने के लिए कदाचित् ज्ञानियों के भी उक्त प्रशस्त राग होता है।' मुख-प्यास से दुखी व्यक्ति को देखकर दया-करुणा भाव होना अनुकम्पा है । क्रोधादि चार कपायों के निमित्त से मन में क्षोभ पैदा होना कलुपता है । यो पापात्रव के कारणों में बहुत प्रमाद युक्त चर्या कलुषपरिणाम, विषयलोलुपता, पर को संतापित करना और पर के अपवाद करने को प्रमुखरूप से गिनाया है। पापासव के भावों का सविस्तार कथन करते हुए लिखा है कि आहार, भय, मैथुन व परिग्रह ये चार संज्ञाएं, कुरुण, नील व कापोत ये तीन लेश्याएँ, राग-द्वेष के प्रकर्ष के कारण इंद्रियाधीनपना, चार प्रकार का प्रार्तध्यान (इष्ट वियोगज, अनिष्ट संयोगज, वेदनज व निदानज ग्रार्तध्यान, चार प्रकार का रौद्रध्यान हिंसानंद, मषानंद, चौर्यानन्द व विषयसंरक्षणानन्द रौद्रध्यान}. व्यर्थ के कार्यों में लगा हना ज्ञान और मोहरूा परिणाम ये सभी भाव पापास्रव हैं, जो द्रव्यपापास्रव के निमित्त हैं । इसप्रकार आपदार्थ का व्याख्यान समाप्त होता है। __ अब संवर पदार्थ व्याख्यान अधिकार में पाप दो संवर का कथन करते हए लिखा है कि भली-भांति मार्ग में रहकर इंद्रिय, कषाय और संज्ञाओं का जितना निग्रह होता है. उतना पापानव रुकता है । सामान्यतः संवर का स्वरूप लिखते हुए बताया है कि जिसे परद्रव्यों के प्रति मोहराग-द्वेषरूप भाव नहीं है, तथा मध्यस्थ या समभाव है। उसे शुभ-अशुभ कर्म का प्रास्रबनहीं होता। यहाँ शुभाशुभ परिणाम को रोजाना ही भाव व द्रव्यरूप पुण्य तथा पाप संवर का प्रमुख हेतु है ऐसा स्पष्ट किया है । उक्त विवेचन के साथ संवरपदार्थ का व्याख्यान समाप्त हुआ ।' आगे निर्जरापदार्थ के व्यास्थान में निर्जरा का स्वरूप स्पष्ट करते हुए लिखा है कि शुभाशुभ परिणाम के निरोधरूप संवर द्वारा और शुद्धोपयोग द्वारा अपन को परिणमाता हुमा अथवा इन दोनों से युक्त होता --- .. ....... . १. ममयच्याश्या, गा. १३५ । २. वहीं, गा. १३६ से १३६ तया । १. वहीं, मा. १४० । ४. वहीं, गा. १८१ से १८३ नाक । -.-1 -.-
SR No.090002
Book TitleAcharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUttamchand Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages559
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size9 MB
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